दूसरी शर्त यह है कि उसके आवास की दुर्ग की भांति व्यवस्था की जाए; और तीसरी यह कि उसके आवास में आने-जानेवाले अतिथियों की जांच-पड़ताल गणकाध्यक्ष न करें।"
गणपति के यह कहकर बैठते ही महाबलाधिकृत सुमन ने क्रोध से आसन पर पैर पटककर कहा––"भन्ते, यह तो आत्मघात से भी अधिक है। मैं कभी इसका समर्थन नहीं कर सकता कि देवी का आवास दुर्ग की भांति व्यवस्थित रहे। इसका तो स्पष्ट यह अर्थ है कि देवी अम्बपाली अलग ही अपनी सेना रखेगी और नगर के कानून उसके आवास में रहनेवालों पर लागू नहीं होंगे।"
सिन्ध-विग्राहिक जयराज ने कहा––"और उसके आवास में कौन आता-जाता है, यदि इसकी जांच-पड़ताल गणकाध्यक्ष न करेंगे तो निश्चय ही अम्बपाली का आवास शीघ्र की षड्यन्त्रकारी शत्रुओं का एक अच्छा-खासा अड्डा बन जाएगा और वे लोग निश्चिन्तता से वैशाली में ही बैठकर वैशाली के गणतन्त्र की जड़ उखाड़ने के सब प्रयत्न करते रहेंगे और यदि कभी नगर-रक्षक को किसी चोर या षड्यन्त्रकारी के वहां रहने का सन्देह होगा, तभी देवी की सेना राज्य की सेना के कार्य में बाधा डाल सकेगी और यदि वह चोर कोई शत्रु, राजा या सम्राट हुआ तो उसकी सेना को भीतर-बाहर से पूरी सहायता प्राप्त हो जाएगी। भन्ते, मैं कहना चाहता हूं कि इस समय वैशाली का गणसंघ चारों ओर से शत्रुओं से घिरा हुआ है। एक तरफ राजगृह के सम्राट् बिम्बसार उसे विषम लोचन से देखते हैं, दूसरी ओर मत्स्य, अंग, बंग, कलिंग, कोसल और अवन्ती के राजाओं की उस पर सदा वज्रदृष्टि बनी हुई है। वे सदा वैशाली के गणसंघ को ध्वस्त करने की ताक में रहते हैं। यदि हमने देवी अम्बपाली की ये दो शर्तें स्वीकार कर लीं तो निस्सन्देह उसका आवास शत्रुओं के गुप्तचरों का एक केन्द्र बन जाएगा और हमारे घर में एक ऐसा छिद्र हो जाएगा जिससे हम वैशाली जनपद की रक्षा नहीं कर सकेंगे।"
संथागार से बाहर-भीतर फिर विषम कोलाहल हुआ। परन्तु गणनायक सुनन्द के खड़े होते ही सब चुप हो गए। गणपति ने कहा-"भन्ते, अम्बपाली जैसी गुण गरिमापूर्ण जनपदकल्याणी के लिए जनपद को कुछ बलिदान तो करना ही होगा। इस समय जब कि वैशाली का जनपद पद-पद पर शत्रुओं से घिरा है, हमें छोटी-छोटी बातों पर गृह-कलह नहीं करनी चाहिए। मैं अपने तरुण सामन्तपुत्रों से, जो बार-बार अपने खड्ग और भाले चमका-चमकाकर बात-बात पर रोष प्रकट करते हैं, यह कहना चाहता हूं कि वह समय आ रहा है, जब उनके बाहुबल और शस्त्रों की परीक्षा होगी, जिन पर उन्हें इतना गर्व है। पर हमें अपनी शक्ति, शत्रु पर ही लगानी चाहिए, गृह-कलह से आपस में टकराकर नष्ट नहीं होना चाहिए। इसलिए गण-सन्निपात से मैं अनुरोध करूंगा कि वह देवी की दूसरी शर्त स्वीकार कर ले। तीसरी शर्त की बात यह है कि जब कभी देवी के आवास की जांच करने की आवश्यकता समझी जाए तो उसे एक सप्ताह पहले इसकी सूचना दे देनी चाहिए।"
सभा-भवन में सन्नाटा हो रहा। गणपति, कुछ देर को चुप रहकर बोले—"भन्तेगण सुनें, जैसा मैंने प्रस्ताव किया है, देवी अम्बपाली की दूसरी शर्त ज्यों की त्यों और तीसरी प्रस्तावित संशोधन के साथ स्वीकार कर ली जाए। इस पर जो सहमत हों, वे चुप रहें। जो असहमत हों, वे बोलें।"
सब कोई चुप रहे। गणपति ने कहा—"सब चुप हैं। अब मैं दूसरी बार—और तीसरी