पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/२७२

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उन्होंने सोम का आलिंगन किया । सोम ने कहा - “मैं अपने अविनय के लिए लज्जित हूं , कुमार! ” __ " वह कुछ नहीं मित्र ! भगवान् ज्ञातिपुत्र ने तुम्हारे मन का कलुष देख लिया । मुझसे भी वह छिपा न रहा। मित्र , मैं भगवान् के समक्ष निवेदन करता हूं - भगवान् के आदेश पालन को छोड़ चम्पा - राजनन्दिनी के प्रति मेरे मन में दूसरा अन्य भाव नहीं है । वह , यदि मित्र, तेरे प्रति अनुरक्त है, तो तेरी धरोहर के रूप में विदूडभ के पास उपयुक्त काल तक रहेगी । विदूडभ भगिनी की भांति उनकी मान -मर्यादा की रक्षा प्राणों के मूल्य पर भी करेगा। ” ___ “ आश्वस्त हुआ कुमार ! आपकी शालीनता का मैं अभिवादन करता हूं । सोम की सेवाएं सदा आपके लिए उपस्थित रहेंगी। " “ आप्यायित हुआ मित्र ! ” । दोनों ने फिर प्रेमालिंगन किया और अपने- अपने मार्ग चले ।