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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/२७४

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" इसका निराकरण करना होगा, अय्ये ! " " तुमसे किसने कहा ? " " श्रमण भगवान् महावीर ने । " “ कुमारी कहां है भद्र ? ” " दक्षिण हर्म्य के अन्तःप्रकोष्ठ में । " " तब चलो हला , राजकुमारी को आश्वासन दें । " “ किन्तु करणीय क्या है बहिन ? “ कुमारी से कोसल- राजकुल को क्षमा मांगनी होगी । " " परन्त उसकी रक्षा ? " “ क्या महिषी देवी मल्लिका सब जान- सुनकर भी राजनन्दिनी को दासीभाव से मुक्त न करेंगी ? " “ हो सकता है, पर पिताजी से आशा नहीं है। इसलिए अभी उन्हें तुरन्त श्रावस्ती से बाहर गोपनीय रीति से भेजना होगा। पीछे और बातों पर विचार होगा । " " तो जात , तू व्यवस्था कर । तब तक हम राजनन्दिनी को आश्वासन देंगी । " ___ "मैंने अपना लघु पोत तैयार करने का आदेश दे दिया है तथा पचास विश्वस्त भट उस पर नियत कर दिए हैं । पोत उन्हें अति गोपनीय भाव से साकेत ले जाएगा । वहां राजनन्दिनी सुखपूर्वक गुप्त भाव से रह सकेंगी। मैं अपने गुरुपद ब्रह्मण्य - बन्धु को सब व्यवस्था करने को लिख दूंगा । " " तो ऐसा ही हो जात , व्यवस्था करो। " “ परन्तु अय्ये , आपको दो काम एक मुहूर्त में करने हैं । महालय के वाम तोरण पर शिविका उपस्थित है, वहां अत्यन्त गुप्तभाव से राजनन्दिनी पहुंच जाएं । " “ यह हो जाएगा ; और ? “ राजनन्दिनी के लिए दस विश्वस्त दासियां आप तुरन्त तट पर भेज दें । पोत दो मुहूर्त में चल देगा। " गान्धारी कलिंगसेना ने कहा - “यह भार मुझ पर रहा जात ! यह सब व्यवस्था हम कर लेंगे, तुम अपनी व्यवस्था करो। चलो हला , हम चलकर राजनन्दिनी का अभिनन्दन करें । " राजकुमारी कुण्डनी से धीरे- धीरे बात कर रही थीं कि देवी कलिंगसेना और नन्दिनी ने पहंचकर राजनन्दिनी का अभिनन्दन किया । कुमारी दोनों को देखकर ससंभ्रम उठ खड़ी हुई । कलिंग ने उन्हें अंक में भरकर कहा - “ शुभे राजकुमारी, मैं ही हतभाग्या कलिंगसेना हूं, जिसके कारण तुम्हें यह भाग्य -विडम्बना भी सहनी पड़ी है। ये युवराज विदूडभ की माता महारानी नन्दिनी देवी हैं । हम दोनों कोसलवंश की ओर से तुमसे क्षमा प्रार्थना करती हैं और आश्वासन देती हैं कि अब तुम्हारा कष्ट दूर हुआ । श्रमण महावीर के आदेश से कुमार विदूडभ ने तुम्हारा संरक्षण ग्रहण किया है और अभी एक मुहूर्त में तुम्हारा यहां से उद्धार हो जाएगा बहिन ! मैं अपनी दस विश्वस्त दासियां तुम्हें अर्पण करती हूं । भगवान् महावीर जैसा कहेंगे, वैसा ही किया जाएगा। फिर, हम लोग भी तुम्हारी प्रिय हैं हला ! अब शोक त्यागो और हमारे साथ चलो । परन्तु , यहां से तुम्हारा अभिगमन अत्यन्त