पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३७७

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109. नन्दन साहु वैशाली के अन्तरायण में नन्दन साह की हट्ट खूब प्रसिद्ध थी । उसकी हट्ट में जीवन सामग्री की सभी जिन्स बिक्री होती थी । हल्दी-मिरच और लहसुन से लेकर अन्त : पुर को सुरभित करने योग्य दासियों तक का क्रय -विक्रय होता था । प्रात : सूर्योदय से लेकर रात के दो पहर तक उसकी दुकान पर ग्राहकों की आवाजाही रहती थी । बढ़िया और काम - लायक सौदों की बिक्री का समय रात्रि का पिछला पहर ही होता था । उसकी विस्तृत दुकान में अनेक जिन्स अव्यवस्थित रूप से भरी रहती थी । उनकी कभी सफाई न होती थी । रात को एक दीपक हट्ट में जलता रहता था , जिसकी पीली और धीमी ज्योति में हट्ट की सभी वस्तुएं कांपती हुई - सी प्रतीत होती थीं । हट्ट, हट्ट का स्वामी , हट्ट का सारा सामान बहुत अशुभ और बीभत्स - सा लगता था , परन्तु गर्जू ग्राहक फिर भी वहां आते ही थे । एक पण में सात मसाले से लेकर सौ दम्म तक के सम्भ्रान्त ग्राहक वहां बने ही रहते थे। इस हट्ट में भरी हुई असंख्यनिर्जीव वस्तुओं में चार सजीव वस्तु थीं , चारों में एक स्वयं गृहपति नन्दन साहु, दूसरी उसकी पत्नी ‘ भद्रा , तीसरी बेटी शोभा और चौथा पुत्र दामक । साह की आय साठ को पार कर गई थी , गंजे सिर पर गिनती के दो - चार बाल खड़े रहते थे। सम्भव है- उसने जीवन भर पेट भरकर भोजन नहीं किया था । उसी से उसका शरीर एक प्रकार से कंकाल -मात्र था । वह कमर में एक मैली धोती लपेटे प्रात : काल से आधी रात तक अपने थड़े पर बैठा - बैठा तोलता रहता था । कभी वह रोगी नहीं हुआ , कभी अपने आसन से अनुपस्थित नहीं हुआ, कभी किसी पर क्रोध नहीं किया । वह सबसे हंसकर बोलता , सावधानी से सौदा बेचता और कमाई के पणों को गिन -गिनकर सहेजता , यही उसके जीवन का नित्यकर्म था । वह मितभाषी भी पूरा था और बात का धनी भी । वह छोटे बड़े सबकी आवश्यकताएं पूरी किया करता । इसी से वैशाली में सब कोई नन्दन साहु के नाम से परिचित थे। परन्तु इन सब व्यवसायों के अतिरिक्त उसका और भी गूढ़ एक व्यवसाय था , जिसे कोई नहीं जानता था ।