दस्यु धीरे - से एक ओर हट गया । युवराज झोंक न संभाल सकने के कारण औंधे मुंह पृथ्वी पर गिर गए । दस्यु ने एक लात मारकर कहा- “ अब घुटनों के बल बैठकर प्राणदान मांगो युवराज ! ” और उसने अनायास ही युवराज को अपने चरणों पर लुटा दिया । अम्बपाली ने हर्षातिरेक से विह्वल होकर कहा - “ ओह ! " परन्तु दूसरे ही क्षण क्रुद्ध सामन्तपुत्र चारों ओर से खड्ग ले - लेकर दौड़े । “ जो जहां है, वहीं खड़ा रहे । ” दस्यु ने कड़कते स्वर में कहा - “ मैं यहां तुम मद्यप स्त्रैणों की हत्या करने नहीं आया हूं ! " लोगों ने भयभीत होकर देखा - अनगिनत काली- काली मूर्तियां प्रेत की भांति कक्ष में न जाने कहां से भर गईं । सबके हाथ में विकराल नग्न खड्ग थे। दस्यु ने कहा - “ एक - एक आओ और अपने - अपने स्वर्ण- रत्न , आभरण अंगों पर से उतारकर यहां मेरे चरणों में रखते जाओ! सबने देखा, प्रत्येक के पृष्ठ पर एक - एक यम नग्न खड्ग लिए खड़ा है । सब जड़वत् खड़े रहे । “पहले तुम स्वर्णसेन ।” — दस्यु ने युवराज की गर्दन पर खड्ग की नोक रखकर कहा। स्वर्णसेन ने अपने रत्नाभरण उतारकर चुपचाप दस्यु के पैरों में रख दिए । इसके अनन्तर एक - एक करके सबने उनका अनुसरण किया । दस्यु ने मुस्कराकर कहा - " हां अब ठीक हुआ । " अम्बपाली ने मदलेखा को संकेत किया , वह कक्ष में गई और एक रत्न -मंजूषा लेकर लौट आई , उसे अम्बपाली ने अपने हाथों में ले चुपचाप दस्यु के चरणों में रख दिया । इसी समय महाप्रतिहार ने भय से कांपते - कांपते आकर कहा - “ देवी , सम्पूर्ण आवास को सहस्रों दस्युओं ने घेर लिया है। " अम्बपाली ने स्निग्ध स्वर में कहा “ आगार -जेट्ठक को कह भद्र कि सब द्वार खोल दे, सब पहरे हटा ले , समस्त भण्डार उन्मुक्त कर दे और दस्यु से कह कि वे सम्पूर्ण आवास लूट ले जायं। ” _ प्रतिहार भयभीत होकर कभी देवी और कभी दस्युपति के चरणों में पड़ी रत्न - राशि की ओर, कभी प्रस्तर- प्रतिमा की भांति अवाक् -निस्पन्द खड़े सेट्ठि - सामन्त - पुत्रों को देखने लगा । फिर चला गया । अम्बपाली ने कल में खड़े दस्युओं को सम्बोधित करके कहा - “मित्रो , उस कक्ष में आज की बहुमूल्य उपानय उपहार -सामग्री एकत्रित है, इसके अतिरिक्त आवास में शत - कोटि स्वर्णभार, बहुत - सा अन्न - भण्डार तथा गज , रथ , अश्व हैं । वह सब लूट लो । अनुमति देती हूं, आज्ञा देती हूं! ” ऐसा प्रतीत होता था जैसे देवी अम्बपाली के शरीर का एक - एक रक्त -बिन्दु आनन्द से नृत्य कर रहा था । दस्यु बलभद्र ने संकेत से सबको रोककर फिर अम्बपाली की ओर घूरकर कहा - “ देवी और सब तथाकथित भद्र जन उस कक्ष के उस पार अलिन्द में तनिक चलने का कष्ट करें । " सबने दस्यु की आज्ञा का तत्क्षण पालन किया । अलिन्द में जाकर दस्यु ने द्वार का
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