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गुण-रस

जब तक समूचा घट बना है तब तक उसके कुल अंश में आग का जोर नहीं पहुँच सकता, और जब तक कुल परमाणु आग से स्पृष्ट न होंगे तब तक उनका रंग नहीं बदल सकता। यदि परमाणुओं के बीच में आग का प्रवेश माना जाय तो परमाणु जब तक एक दूसरे से पृथक् न हो जांय तब तक उनके बीच में आग का पहुँचना सम्भव नहीं है। और जब परमाणु परस्पर विभक्त हो गये तब समूचे घट का रहना असम्भव है। परमाणुओं के विलग होने ही से घट चूर चूर हो जाता है।

पिठर-पाक-वादी नैयायिक हैं। यही एक प्रधान विषय है जिससे न्याय और वैशेषिक पृथक् माने गये हैं। इनका कहना है कि यदि कच्चे घट का एक दम नाश हो गया तो जब घट पक कर लाल हो जाता है तब हम यह कैसे कह सकते हैं कि 'यह वही घट है जिसको मैंने आग में डाला था'। क्योंकि जिसको आग में डाला वह तो नष्ट हो गया, उसके स्थान में दूसरा लाल रंग का घट उत्पन्न हो गया। पर इसका समाधान यह है कि दूसरा घट जो उत्पन्न हुआ सो पहिले से इतना मिलता हुआ पैदा हुआ कि इन दोनों का भेद मालूम नहीं होता इसीसे 'यह वही घट है' ऐसा भान होता है।

पीलुपाक वाद का मानना वैशेषिकमतावलम्बी का एक प्रधान चिह्न कहा गया है।

द्वित्वे च पाकजोत्पत्तौ विभागे च विभागजे
यस्य न स्खलिता बुद्धिस्तं वै वैशेषिकं विदुः।

रस (दूसरा गुण)

रस का ज्ञान रसनेन्द्रिय जिह्वा से होता है, यह पृथ्वी जल इन द्रव्यों में रहता है, जिह्वा की मदद करता है, प्राणधारण, बल, आरोग्य पुष्टि इनका कारण है। मधुर (चीनी में) अम्ल (खट्टा) (नीबू में), लवण (नमक का), तिक्त (तीता) (नीम में), कटु (कडुआ) (मिर्चा में), और कषाय (आवला में) छ प्रकार का रस होता है। यह भी रूप की तरह नित्य अनित्य दोनों है। जल परमाणु का रस नित्य और पृथ्वी परमाणु में अनित्य है, क्योंकि पार्थिव चीज़ का रस अग्नि संयोग से बदल जाता है।