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वोल्गासे गंगा


कहीं कोई वादके आह्वान ( चैलेंज )की घोषणाके तौरपर जम्बू ( जामुन )की शाखाको गाड़ते घूमता फिरता। प्रवाहणने छप्पन पीढ़ियोंको भटकानेके लिये ब्रह्म साक्षात्कारके बहुतसे उपाय बतलाये थे, जिनमें प्रव्रज्या ( सन्यास ) ध्यान, तप आदि शामिल थे। अब उपनिषद्की शिक्षासे बाहर वाले आचार्य भी अपने स्वतंत्र विचारों के साथ प्रव्रज्या और ब्रह्मचर्यपर ज़ोर देते थे। अजित केसकम्बल बिल्कुल जड़वादी था, सिवाय भौतिक पदार्थोंके वह किसी आत्मा, ईश्वर-मकि, नित्य तत्व, या स्वर्ग-नर्क-पुनर्जन्म को नहीं मानता था, तो भी वह स्वयं गृह-त्यागी ब्रह्मचारी था। जिन सामन्तोंका उस वक्त शासन था, उनकी सहानुभूतिका पात्र बनने ही नहीं, बल्कि उनके कोपसे बचनेके लिये भी यह ज़रूरी था, कि अपने जड़वादको धर्मका रूप दिया जाये। लौहित्य ब्राह्मण-सामन्त तथा पायासी जैसे राजन्य-सामन्त जड़वादी थे, और अपने विचारोंके लिये लोगोमें इतने प्रसिद्ध थे, कि जड़वादको छोड़नेमे भी वह लोक लज्जा समझते थे, तो भी इनका जड़वाद समाजके लिये खतरनाक नही था।

जड़वादका प्रचार देखा जाता था, लेकिन ब्राह्मण-क्षत्रिय सामन्तों तथा धन कुवेर व्यापारियोंकी सबसे अधिक आस्था गौतम बुद्ध अनात्मवादकी ओर थी- कोसलमे विशेषकर। इसमें एक कारण यह भी था, कि गौतम स्वयं कोसलके अन्तर्गत शाक्य गणके निवासी थे। गौतम जड़वादियोंकी भाँति कहते थे— आत्मा, ईश्वर आदि कोई नित्यवस्तु विश्वमें नही है, सभी वस्तुएँ उत्पन्न होती हैं, और शीघ्र हीं विलीन हो जाती हैं। संसार वस्तुओंका समूह नहीं, बल्कि घटनाका प्रवाह है। समझदार आदमियोंके लिये यह विचार बहुत ही युक्तिसंगत, हृदयंगम जान पड़ते थे। किन्तु, ऐसे अनित्यतावादी से लोकमर्यादा, गरीब-अमीर, दास-स्वामीके भेदको ठोकर लग सकती थी, इसलिये तो अजितका जड़वाद सामन्त और व्यापारी वर्ग में सर्वप्रिय नहीं हो सका। गौतम बुद्धने अपने अनात्म वाद-जड़वाद–में कुछ