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वोल्गासे गंगा


आखिर बची भी नहीं। अच्छा हुआ मर गईं, संसारमें उसे भी तो हमारे ही जैसा जीवन जीना पड़ता। सचमुच काक ! हम दासका कोई जीवन नहीं है। इतना ही नहीं, हमारा कसाई स्वामी कह रहा है कि इस चहल पहल बीतते ही वह मेरी स्त्रीको बेंच देगा।
"तो, उस कसाई दंडपाणिको लोहेसे दागनेसे भी सन्तोष नहीं आया ?"
"नहीं भाई ! वह कहता है कि बारह वर्ष बाद उस बच्चीके उसे पचास निष्क ( अशर्फियाँ ) मिलते। मानों, हमने जान बूझकर उसके पचास निष्क बर्बाद कर दिये।"
"और मानों, हम दासोंके पास माँ-बापका हृदय ही नहीं है।"
एक तीसरे वृद्ध दासने बीचमें कहा— और एक यह भी दासी ही का लड़का है जिसके स्वागतके लिये यह सारी तैयारीकी जा रही है।”
"कौन दादा ?"
"यही कोसल-राजकुमार विदूडम !”
"दासी का पुत्र !"
"हाँ, महानाम शाक्यकी उस बुढ़िया दासीको नहीं जानता, हमारे जैसी काली नहीं— किसी शाक्यके वीर्य से होगी।"
"और दासियोंमें उसकी क्या कमी है दादा ?"
"हाँ, तो उसी दासी से महानामकी एक लड़की पैदा हुई थीं। बड़ी गौर, बड़ी सुन्दर देखनेमे शाक्यानी मालूम होती थी।"
"क्यों न मालूम होगी ? और सुन्दर लड़कियोंको चाहे वह दासी की भी हों, मालिक बड़े चावसे पालते-पोसते हैं।"
"कोसलराज प्रसेनजित् किसी शाक्य कुमारीसे ब्याह करना चाहता था, किन्तु कोई शाक्य अपनी कन्याको देना नहीं चाहता था-शाक्य अपनेको तीनों लोकमें सबसे कुलीन मानते हैं काक ! किन्तु साफ इन्कार करनेसे कोसलराज शाक्योंके गणपर कोप करता। इसीलिये महानामने अपनी इसी दासीकी लड़कीको शाक्य कुमारी