पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

बॉल्गासै गंगा लिया था, तुम्हें यवन, देशमें पहुँचानेका १ मैंने क्या तुमसे कहा नहीं था कि तुम वह अपने प्रियको ढूंढ लेना है। | "हाँ, कहा था । 'तुम्हारे इस असाधारण इर्षको देखकर मुझे ख्याल होने लगा था, कि तुम्हें कोई असाधारण प्रिय वस्तु प्राप्त हुई है ।।

  • तुम्हारा ख्याल ठीक निकला नाग !" | अच्छा तो मुझे आशा दो तुम्हारे प्रियतमको यहाँ निमंत्रित करनेकी, या यदि वह अभी यहाँ न आ सकता हो तो उसे देखनेकी ।”

“किन्तु, तुम इतने उतावले क्यों हो रहे हो ? "सचमुच ही मैं उतावला हो रहा हूँ। तुम गलत नहीं कह रही 'हो, नागदत्तनै अपने को रोकनेकी कोशिशकी । सोफियाको भय मालूम होने लगा, कि वह अपने आँसुओंको रोक न सकेगी | उसने एक ओर मुँह फेरकर कहा| देख सकते हो, किन्तु, तुम्हें एथेन्सके तरुणका मैस धारण करना होगा, इससे कुछ अच्छा ।” वह नया तोगा, नया चप्पल जो तुम कल खरीद लाई, मैं उसे पहिने लेता हूं।" | जाओ, पहिन आओ, तब तक मैं अपने प्रियतमके लिये माला ले लें, लिदिया उसे गूंध रही है ।” अच्छा" कह नागदत्त दूसरे कमरे में चला गया। सोफिया बैठककै बड़े दर्पणके सामने खड़ी हुई, उसने अपने वस्त्रों और फूलके आभूषणों पर एक बार फिर हाथ फेरा, फिर एक मालाको दर्पणके पीछे रख, चुपकेसे कमरेके द्वार पर जाकर बोली| नाग ! बहुत देर हो रही है, कही मेरा प्रियतम किसी प्रमोद- ' शालामें न चला जाये ।

  • जल्दी कर रहा हूँ सोफ़ी ! यह तुमने कैसा होगा ला दिया है, इसकी चंदन ठीक नहीं बैठ रही है।