पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१८९

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१ धोलासे गंगा * 'ती प्रभाको ही उर्वशी बनना होगा। हमारी मण्डलीमें जो काम जिसको दिया जाता है, वह उससे इन्कार नहीं कर सकता। ' प्रमाके नेत्र कुछ संकुचित होने लगे थे, किन्तु प्रमुख तरुणके क्यों प्रमा' कहनेपर उसने ज़रा रुककर हाँ कर दिया । | अश्वघोषनै प्रमुख यवन तरुण-बुद्धप्रियकै साथ कुछ यवननाटककै प्राकृत-रूपान्तरों को पढ़ा और उनके स्थान आदिके संकेतके बारे में बातचीत की। नाटकके चित्रपटका नामकरण उसने यवन (यूनानी) कलाके स्मरणके रूपमें थवनिका रखा । नाटकको संस्कृतप्राकृत, गद्य-पद्य दोनोंमें लिखा । उस समयको प्राकृत संस्कृतके इतना समीप थी कि सम्भ्रान्त परिवारों में उसे आसानीसे समझा जाता था। यही 'उर्वशी वियोग' प्रथम भारतीय नाटक था, और अश्वघोष या प्रथम नाटककार । कविका यह पहला प्रयास था, वो भी वह उसके 'राष्ट्रपाल’, ‘सारिपुत्र' आदि नाटकोंसे कम सुन्दर नहीं था। रंगक्री तैयारी तथा अभिनय अभ्यासमें तरुण कविको खानापीना तक याद नहीं रहता था। इसे वह अपने जीवनको सुन्दरतम 'धड़याँ समझता था । रोज़ घण्टौं वह और प्रभा साथ तैयारी करते थे। तैराकीके दिन उनके हृदयोंमें पड़ा प्रेम-बीज अब, अंकुरित होने लगा था । यवन तरुण-तरुणी अश्वघोषको आत्मीयके तौरपर देखना चाहते थे, इसलिए वह इसमें सहायक होना अपने सौभाग्यकी बात समझते थे। एक दिन घड़ियोंके तुलिका संचालनकै बाद अश्वघोष नाट्यशालाके बाहर हुद्रौद्यार्नमें रखी आसन्दिकापर जा बैठा। उसी समय प्रभा भी वह आ गई । प्रमाने अपने स्वाभाविक मधुर स्वर कहा--कवि, तुमने उर्वशी-वियोग गीत बनाते वक्त ; अपने सामने क्या रखा था 'उर्वशी और पुरूरवाके क्वथानकको ।