पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

दुर्मुख २३७ आदि प्रदान कीं। कितने दूसरे भौगी हैं, जो सिर्फ अपने आनन्द भरको ही सब-कुछ समझते हैं। लोग कहेंगे, मैंने राजा हर्षको प्रसन्न करनेके लिए अपने नाटकोंको उसके नाम से प्रकट कर दिया । उन्हें यह मालूम नहीं कि जिस वक्त प्रवासमें ये नाटक लिखे गए थे, उस वक्त मैं हर्षका सिर्फ नास-भर जानता था। उस वक्त मुझे यह भी पता न था कि कभी इर्ष मुझे बुलाकर अपना दरबारी कवि बनायेंगे। मैंने इन नाटकका कर्ता हर्षको सिर्फ अग्नेको छिपानेके लिए प्रकट किया | इन नाटकके पढ़नेवाले उनके मूल्यको जानते हैं। वह बिल्कुल नए थे । भैरे दर्शकोंमें गुणीजनोंकी संख्या भी होती थी। पडित, राजा, कलाविद् ख़ास तौरसे उन्हें देखने आते थे । यदि उनको पता लग जाता, तो मैं नाटक-मण्डलीका सूत्रधार न रह पाता। लोग महाकवि वाणके पीछे पड़ जाते। मैंने हर्षको छोड़ कामरूप (आसाम से सिन्धु और हिमालयसे सिंहलके अनुराधपुर तक राज-दरबारोंको अपने नाटक दिखलाये थे। ख़याल कीजिये, यदि कामरूपेश्वर, सिंहलेश्वर तथा कुन्तलेश्वरको पता लग जाता कि नाटकों का महाकवि यदी वाणभट्ट है, तो फिर मेरे पर्यटन, मेरे आनन्दानुभाव का क्या होता है मैं दरबारी कवि नहीं बनना चाहता था। यदि हर्ष राज्यमें बसता न होता, तो उनका भी दरवारी कवि न बनता। मेरे पास पिताकी काफी सम्पत्ति थी। | आपको ख़याल हो सकता है, हर्षके कहनेके अनुसार मै निरा मुजंग–वेश्या लम्पट–था। मेरी भण्डलीमें वार-वनिताएँ वहुत कम आई । जो आईं, उन्हें मैंने नृत्य-संगीत-अभिनय-कलाके ख़यालसे लिया। मेरे नाट्य गगनकी तारिकाएँ दूसरी ही तरह आती थी। आगे क्या होगा, नहीं जानता; किन्तु, इस वक्त देशकी सारी तरुणियाँ राजाओं और उनके सामन्तोंकी सम्पत्ति समझी जाती हैं-चाहे वे ब्राह्मणकी कन्याएँ हों या क्षत्रियकी । भेरी बुआको मगध एक मौखरि सामन्तने जवरदस्ती रख लिया था। वह मर गया, और बुआकी आयुभी गिर