पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२५०

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१४-चक्रपाणि | काल---१२०० ई० उस वक्त कन्नौज भारतका सबसे बड़ा और समृद्र नगर था। उसके हाट-बाट, चौरस्ते बहुत ही रौनक थे। मिठाइयाँ, सुगन्धि तेल, पान, आभूषण और कितनी ही दूसरी चीज़ोंके लिए वह सारे भारतमे मशहूर था। छः सौ सालोसे मौखर, बैस, प्रतिहार, गहरवार-जैसे भारतके अपने समयके सबसे बड़े राजवशोंकी राजधानी होने के कारण उसके प्रति एक दूसरी ही तरहकी श्रद्धा लोगोंमै हौ आई थी। यही नहीं, जातियोंने उसके नामपर अपनी शाखाओंके नामकरण कर डाले थे। इसीलिए आज ब्राह्मण, अहीर, काँदू आदि बहुत-सी जातियोंमें कान्यकुब्ज ब्राह्मण, कान्यकुब्ज अहीर आदि हैं। कान्यकुञ्ज ( कन्नौज के नामपर लोगों को उसी तरहका ख़याल पैदा हो जाता था, जैसा कि हिन्दूधर्मके नामपर । हर्षवर्द्धनके समयसे अब तक दुनियामें बहुत परिवर्तन हो गया था; किन्तु तबसे अब भारतीय दिमाग़में भारी कूपमंडूकता आ गई थी । हर्षवर्द्धनके कालमें अरब में एक नया धर्म-इस्लाम–पैदा हुआ था, जिसको उस समय देखकर कौन कह सकता था कि उसके संस्थापक की मृत्यु ( ६२२ ई० ) के सौ सालके भीतर ही वह सिन्धसे स्पेन तक फैल जायगा । जातियों और राजाओंके नामपर देश-विजय ही अब तक सुननेमें आती थी, अब धर्मके नामपर देशॉकी विजय-यात्रा पहले-पहले सुनने में आई । उसने अपने शिकारोंको सजग होनेका मौका नहीं दिया, और उन्हें एकाएक धर दबाया । ससानियों ( ईरानियों ) का ज्ञबरदस्त साम्राज्य देखते-देखते अरबोंके स्पर्शके साथ कागज़की नावकी भांति गल गया और इस्लाम-संस्थापककी मृत्युके बाद दो शताब्दियाँ बीतते-- वीतते इस्लामी राज्यकी ध्वजा पामीरके ऊपर फहराने लगी।