पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२६१

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२६० बोल्गासे गंगा पृथ्वीराज वीर है, कुमार ! 'इसमें कोई सन्देह नहीं, वैद्यराज । वीरताके ही कारण वह तुर्क सुल्तानसे लोहा ले रहा है, नही तो हमारे कान्यकुब्ज राज्यके सामने उसका राज्य है ही कितना ? बह सुल्तानको यदि रास्ता भर दे देता, तो सुल्तान उसे पुरस्कृत करता । सुल्तानकी आंख दिल्लीपर नहीं, कान्यकुब्जपर है । छ: सौ सालसे कन्नौज भारतके सबसे बड़े राज्यपर शासन कर रहा है। किन्तु उन्हें समझाने कौन १ पिता समझनेकी ताकृत खो बैठे हैं। 'यदि इस वक्त वह शासन-भार युवराजके ही हाथमें दे देते । मुझे एक बार ख़याल आया था, वैद्यराज, कि पिताको सिंहासनसे हटा हैं; किन्तु आपकी शिक्षा याद आ गई । बीस वर्षोंमें आपकी प्रत्येक शिक्षा को मैंने हितकर पाया, इसलिए मैं उसके विरुद्ध नहीं जा सकता था। 'कान्यकुब्जका सिंहासन जर्जर हो गया है, कुमार ! ज़रा-सा भी गलत कदम रखनेपर सारी इमारत ढह पड़ेगी। यह समय पिता-पुत्रके कलहका नहीं है। | क्या किया जाय वैद्यराज, हमारे सारे सेनापति तथा सैनानायक कायर और अयोग्य हैं । तरुण सैनानायकॉमें कुछ योग्य और बहादुर हैं; किन्तु उनके रास्तोंको बूढ़े रोके हुए हैं । यही हालत मन्त्रियोंकी है, जो चापलूसी करना भर अपना कर्तव्य समझते हैं । 'रनिवासमें अपनी बहन-बेटी भेजकर जो पद पाते हैं, उनकी यही हालत होती है। लेकिन बीतेकी हमें फिक्र नहीं करनी चाहिए, हमें आगेकी चिन्ता करनी चाहिए।' 'आज मेरे हाथमे होता, तो सारे हिन्दू तरुणोंको सङ्गधारी बना देता । किन्तु यह पीढ़ियोंका दोष है, कुमार, जिसने सिर्फ राजपुत्रोंको ही युद्धकी ज़िम्मेदारी दे रखी है। द्रोण और कृप-जैसे ब्राह्मण महाभारतमें लड़े थे; किन्तु पीछे सिर्फ एक जातिको...'