पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२६३

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२ बलासे, गंगा , 'हमें भी कोशिश करनी चाहिए कि हम मिलकर तुर्की का मुक्काबिला करें ।। 'यह तो महाराजके हाथमें है। पाखंडी श्रीहर्ष उनके कानमें लगी हुआ है। अष्टमीकी रात थी । चाँद अभी-अभी पूरबके क्षितिजपर उगने लगा था। अभी सारी भूमिको प्रकाशित होनेमे देर थी। चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था, जिसमें बहुत दूर कहीं उल्लूकी डरावनी आवाज़ सुनाई दे रही थी। इस नीरवतामे दो आदमी ऊपरसे आकर यमुनाकी अँगनाईमें तेज़ीसे उतर गए। उन्होंने अँगुलियोंको मुंहमें हाल तीन बार सीटी बजाई। यमुनाकी परली ओरसे एक नाव आती दिखलाई पड़ी। नीरव चलती नदीमें धीरे-धीरे थापी चलाती. एक मझोली नाव किनारे पर आ लगी। दोनों आदमी धीरे से नविपर कूद गए । भीतरले किसीने पूछा-'सैनानायक माधव | ‘हाँ आचार्य, और आल्हण भी मेरे साथ आया है। कुमार 'हाँ, अभी तक तो होश नही आया है; किन्तु इसके लिए मैंने थोड़ी-सी दवा भी दे दी है। कहीं कुमार रणक्षेत्रकी ओर लौट पड़वे तो ? | लेकिन आचार्य, वह आपकी आशाका कभी उल्लंघन नहीं कर सकते । | सौ तो मुझे विश्वास है; किन्तु फिर भी यह अच्छा ही है। इससे धावका दर्द भी कम हो जायगा ।', . ।। • 'घाव ख़तरनाक तो नहीं है, आचार्य । । । नहीं सेनानायक, धावको मैंने सी दिया हैं और रक्तस्राव भी बन्दै हो गया है। निर्बलता जरूर है; किन्तु और कोई डर नहीं । अच्छा