पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/२७४

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बाबा नूरदीन फौजके मंगोलोंमें बहुतसे समनी सिपहसालार तथा सैनिक थे । बुखारा समरकंद, बलख आदि इस्लामी दुनियाके शहरों को मुसलमानों की सभ्यताके समस्त केद्रोंको उन्होंने चुन चुनकर तबाह कर डाला । उन्होंने इमारी औरतों को बिना ऊँचे नीचे घरानेका ख्याल किये आमतौरसे दासी बनाया। बच्चों को बेदर्दीसे कत्ल किया। इन सब जुल्मोंके प्रोत्साइन देने वाले वही समनी मगोल थे। वह कहते थे अरबोंने हमारे विहारों को बर्बाद किया, हमारे नगरोंको जलाया, हमारे बच्चोंको मारा; हमें उसका बदला लेना है । ख्याल कीजिये, यदि मंगोल कहीं हिंदी समनियों ( बौद्धों से मिलकर वह हिन्दुओंको अपनी ओर खींचने में सफल होते, तो इस्लाम की क्या हालत हुई होती है । “बर्बादी होती, जहाँपनाह ! “इसलिये हमे बालू की रेत पर अपने राज्यकी नींव नही रखनी हैं, हुम गुलामोंकी नकल नहीं कर सकते ।" वज़ीर अबतक चुप था, अब उसने मुँह खोला--"लेकिन सर्कारआली ! गाँव के अमलोंकी ताकत कमज़ोर होने पर सल्तनत कैसे वहाँ तक पहुचेगी।" जब रेशम पहिनने वाले, घोड़ों पर चलने वाले अमले नहीं थे, तब कैसे काम चलता था--आपको मालूम है । मैंने इसकी खोज नहीं की ।” * मैंने खोजकी है। जब शासकोंने अपने को लुटेरों जैसा समझा, तब उन्होंने लूटने वाले अमले नियुक्त किये । ऐसा सब समय सब जगह होता है। उससे पहिले हर गाँवमें पंचायतें होती थी, जो गाँवकी सिंचाई, लड़ाई-झगड़े से लेकर सर्कारको लगान देने तकका सारा प्रवध स्वय करती थीं । राजाको गाँवके किसी एक व्यक्ति से कोई काम न था। वह सिर्फ पचायतसे वास्ता रखता था, वह समझता था कि लगान देने वाले किसान और उसके बीच संबंध स्थापित करनेके लिये यही पचायतें हैं ।” १८ :