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पृष्ठ:शशांक.djvu/१००

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(८०) वज्राचार्य हाँ, एक बात कहना तो मैं भूल ही गया । मेरे वहाँ पहुँचने पर एक नई बाधा खड़ी हुई अर्थात् यशोधवलदेव- बंधु०-क्या कहा ? वज्रा०-युवराज भट्टारकपादीय महानायक यशोधवलदेव । बंधु- गुप्त ? तुम उनके पुत्र की हत्या करने वाले हो । क्या इतने ही दिनों में रोहिताश्व के गढ़पति को भूल गए ? बंधुगुप्त अब तक बैठा था, यह बात सुनते ही वह घबरा कर उठ खड़ा हुआ और कहने लगा "शक्रसेन ! हँसी न करना, ठीक-ठीक कहो । क्या सचमुच यशोधवलदेव नगर में आए हैं ? यदि ऐसा हुआ तो भारी विपत्ति समझो । केवल मेरे ही ऊपर नहीं सारे संघ पर विपत्ति आई समझो। ठीक-ठीक बताओ, क्या सचमुच यशोधवल ही को तुमने देखा?" वज्राचार्य-यह क्या कहते हो, क्या दस वर्ष में ही मैं यशोधवल को भूल जाऊँगा ? घबराओ न, देखो कपोतिक संघाराम से कोई दूत आया है । बुद्धमित्र ! दूत को भीतर ले आओ। एक तरुण भिक्खु एक वृद्ध भिक्खु को साथ लिए मंदिर के भीतर आया । दोनों ने प्रणाम किया । वज्राचार्य ने पूछा “कहो, क्या संवाद है ?" वृद्ध बोला "महास्थविर को विश्वस्त सूत्र से पता लगा है कि. रोहिताश्व के गढ़पति महानायक यशोधवलदेव आज बीस वर्ष पर फिर नगर में आए हैं। इसी लिए उन्होंने मंत्रणा सभा करने का विचार किया है।" वज्राचार्य-यशोधवल के आने का पता मुझे लग चुका प्रातःकाल पुराने दुर्ग के मुँडेरे पर मंत्रणा सभा होगी। सूर्य की किरनों के दुर्ग के कलशों पर पड़ने के पहले सभा का संब कार्य समाप्त हो जाना चाहिए। । कल