पृष्ठ:शशांक.djvu/१२४

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n ( १०४) दोनों कुमार अभी बाल्यावस्था के पार नहीं हुए हैं, उन्हें राजकाज सीखते अभी बहुत दिन लगेंगे। हृषीकेश शर्मा और नारायण शर्मा भी बूढ़े हुए, अब अधिक परिश्रम करने के दिन उनके नहीं रहे। नए कर्मचारियों को अपने मन से कुछ करने धरने का साहस नहीं होता, एक एक बात वे महाराज से कहाँ तक पूछे ! इस प्रकार आपके रहते ही राज्य के सब कार्य अव्यवस्थित हो रहे हैं। चरणाद्रिगढ़ साम्राज्य का सिंहद्वार था। शार्दूलवर्मा के पुत्र महावीर यज्ञवर्मा वहाँ से भगा दिए गए। सम्राट को -इसका संवाद तक न मिला । मंडला- दुर्ग अंग और बंग की सीमा पर है । सदा से मंडलाधीस साम्राज्य के प्रधान अमात्य रहते आए हैं। तक्षदत्त का वह दुर्ग भी अब दूसरों के अधिकार में है। उनकी कन्या और पुत्र के लिए पेट पालने का भी ठिकाना अब नहीं है। महाराजाधिराज ! इससे बढ़कर क्षोभ की बात और क्या हो सकती है ? "आपके रहते ही पाटलिपुत्र नगर की क्या अवस्था हो रही है, आप देख ही रहे हैं। तोरणों पर के फाटक निकल गए हैं। नगर- प्राकार स्थान स्थान पर गिर रहा है, उसका संस्कार तक नहीं होता। प्रासाद का पत्थर जड़ा विस्तृत आँगन घास फूस से ढक रहा कोष में अब तक धन की कमी नहीं है, प्रासाद में कर्मचारियों की भी कमी नहीं है, पर कोई काम ठीक ठीक नहीं होता। क्यों नहीं होता, आप इसे नहीं देखते। चारों ओर शत्रु साम्राज्य के ध्वंसावशेष पर गीध की तरह दृष्टि लगाए हुए हैं। साम्राज्य के अंतर्गत होने पर भी बंग देश पर कोई अधिकार नहीं रहा है। देवी महासेनगुप्ता जब तक जीवित हैं, तभी तक वाराणसी और चरणाद्रि भी प्रकाश्य रूप में थानेश्वर राज्य में मिलने से बचे हुए हैं । यह सब आप अच्छी तरह जानते हैं। आज यदि महादेवी न रहें अथवा प्रभाकर उनकी बात न मानें तो इच्छा रहते भी थोड़ी