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पृष्ठ:शशांक.djvu/१५६

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(१३६) यशो-अवश्य देंगे। राज्य में श्रेष्ठियों का काम अर्थसंचय मात्र है। पुरुष परंपरा से उन्हें इसका अभ्यास रहा है, इसीसे राज्य की ओर से उन्हें इसके लिए पूरा पूरा सुभीता कर दिया जाता है । अतः वे अपने धन का कुछ अंश राज्य की सेवा में देकर अपना परम गौरव समझेंगे। साम्राज्य की छत्र-छाया के नीचे ही उनका पालन होता है, साम्राज्य की रक्षा के पीछे उनकी रक्षा है, साम्राज्य के नाश के आरंभ के साथ ही साथ उनका सर्वनाश है, यह वे जानते हैं; और उन्हें इसकी सूचना भी दे दी जायगी। इस प्रकार कार्य आरंभ कर देने भर के लिए धन उनसे सहज में निकल सकता है । सम्राट-अच्छी बात है। तुमने आज से राज्य के कार्य का भार अपने ऊपर लिया है, इसकी सूचना साम्राज्य के सब कर्मचारियों को तो देनी होगी न ? यशो०-नहीं महाराजाधिराज ! इससे सारा काम बिगड़ जायगा । मैं चुपचाप महामंत्री की ओट में सब कार्यों की व्यवस्था करूँगा। सम्राट-एवमस्तु ।