(१३६ ) और कुछ न करेंगे, अंतःपुर के द्वार पर जाकर बैठे रहेंगे । जब सम्राट बाहर निकलेंगे तब उनसे इसके प्राण की भिक्षा माँगूंगी । बातचीत सुनकर और प्रतीहार भी जाग पड़े। उनमें से एक तरला के पास आकर बोला “तुम लोगों को क्या हुआ है ?" तरला -यह मेरा भाई है। भिक्खु इसे ज़बरदस्ती पकड़ ले गए और सिर मुंडकर भिक्खु बना दिया । कल रात को यह किसी प्रकार उनके चंगुल से निकलकर भाग आया है। इसीसे आज इसे लेकर महाराजाधिराज की शरण में आई हूँ। दिन को यदि इसे भिक्खु कहीं देख पावेंगे तो पकड़ ले जायँगे और मार डालेंगे । अब महाराज यदि शरण देंगे तभी इसकी रक्षा हो सकती है। नगर में किसी की सामर्थ्य नहीं है जो भिक्खुओं के विरुद्ध यूँ कर सके । जो पुरुष खड़ा पूछ रहा था वह एक दंडधर था । प्रतीहारों ने उससे पूछा "तो इसे जाने दें ?" । दंडधर ने तरला से पूछा "तुम दोनों कहाँ जाओगे?" तरला-बाबा ! हम लोग कहीं न जायँगे, कुछ न करेंगे, केवल अंतःपुर के द्वार पर खड़े रहेंगे। जब महाराज निकलेंगे तब उनसे अपना दुःख निवेदन करेंगे। यह कहकर तरला आँसू गिराने लगी। रमणी के विशेषतः किसी सुंदर रमणी के, कपोलों पर आँसू की बूंदें देख पत्थर भी पिघल सकता है, सामान्य प्रतीहारों और दंडधरों के हृदय में यदि करुणा का उद्रेक हो तो आश्चर्य क्या ? तरला ने उन्हें चुप देख रोने की मात्रा कुछ बढ़ा दी । दंडधर का हृदय अंत में पसीजा । वह बोला “ये दोनों कोई बुरे आदमी नहीं जान पड़ते, इन्हें जाने दो।" प्रतीहार रास्ता छोड़कर अलग खड़ा हो गया । तरला वसुमित्र को लेकर प्रासा के भीतर घुसी।
पृष्ठ:शशांक.djvu/१५९
दिखावट