(१५३ ) सबेरे ही से संघाराम के आँगन में बैठे महास्थविर बुद्धघोष गुप्तचरों से संवाद सुन रहे थे। गुप्तचर सब के सब बौद्ध भिक्खु थे। एक आचार्य महास्थविर के सामने खड़े होकर उन सबका परिचय दे रहे थे और महास्थविर चुपचाप ध्यान लगाए सब बातें सुनते जाते थे । एक गुप्तचर कह रहा था 'उस दिन मध्याह्न में सम्राट गंगा किनारे घाट पर बैठे थे, इसी बीच में यशोधवलदेव ने आकर राज्यकार्य का सारा भार अपने उपर लेने की इच्छा प्रकट की । मैं एक पेड़ की आड़ में छिपा सब बातें सुनता रहा' । गुप्तचर इसके आगे कुछ और कहा ही चाहता था कि संघाराम के तोरण पर से एक भिक्खु घबराया हुआ आया और कहने लगा “प्रभो ! बदुत से आश्वारोही वेग से संघाराम की ओर बढ़ते चले आ रहे हैं।" सुनते ही महास्थविर ने कहा “संघाराम का फाटक तुरंत बंद करो।" भिक्खु आज्ञा पाकर तुरंत फाटक पर लौट गया । महास्थविर उठकर फाटक की ओर चले। कपोतिक संघाराम एक प्राचीन गढ़ी के तुल्य था। लोग कहते थे कि वह महाराज अशोक का बनवाया हुआ था। नीचे से ऊपर तक वह पत्थर का बना था । उसके चारों ओर बहुत ही दृढ़ पत्थर का ऊँचा परकोटा था । इस वृहत् संघाराम' के भीतर पाँच सहस्र से ऊपर भिक्खु सुख से रह सकते थे और उस समय भी एक हजार से अधिक भिक्खु उसमें निवास करते थे । संघाराम के चारों ओर चार फाटक (तोरण) थे जो सदा खुले रहते थे। विप्लव के समय कई बार नागरिकों ने संघाराम को तोड़ा था इससे लोहे के असंख्य कीलों से जड़े हुए भारी भारी किवाड़ तोरणों पर लगा दिए गए थे । जब तक कोई भारी आशंका नहीं होती थी महा- स्थविर किवाड़ों को बंद करने की आज्ञा नहीं देते थे, क्योंकि नरगवासी बराबर संघाराम में दर्शन के लिए आते जाते रहते थे। महास्थविर ने फाटक पर जाकर देखा कि असंख्य सशस्त्र अश्वारोही संघाराम को चारों ओर से घेरे हुए हैं। तोरण के सामने खड़े तीन, वर्मधारी पुरुष
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