पृष्ठ:शशांक.djvu/१७४

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(१५४) उनकी व्यवस्था कर रहे हैं । एक अश्वारोही उनके घोड़ों को थामे कुछ दूर पर खड़ा है। तोरण के ऊपर चढ़कर महास्थविर ने उन तीनों वर्मधारी पुरुषों को संबोधन करके कहा “तुम लोग कौन हो? किस लिए देवता का अपमान कर रहे हो ? किसकी आज्ञा से इतने अधिक अस्त्रधारी अश्वारोही लेकर शांतिसेवी निरीह भिक्खुओं के आश्रम को आ घेरा है ?" वर्मधारी पुरुषों में से एक ने उनकी ओर अच्छी तरह देखा और कहा “तुम कौन हो ?” महास्थविर ने उत्तर दिया । “भगवान् बुद्ध के आदेश से मैं इस संघाराम का प्रधान हूँ, मेरा नाम बुद्धघोष है।" वावृत पुरुष हँसकर बोला "अच्छा, तब तो आप मुझे पहचान सकते हैं। मेरा नाम यशोधवल है। मैं रोहिताश्व गढ़ का हूँ। मैं इस साम्राज्य का महानायक हूँ। इस समय अपने पुत्र घातक की खोज में यहाँ आया हूँ। फाटक खोलने की आज्ञा दीजिए। हम लोग संघाराम में नरघाती बंधुगुप्त को हूँ ढ़ेंगे।" कोठे के ऊपर रहने पर भी यशोधवलदेव का नाम सुनते ही महास्थविर डर के मारे दहल गए, पर अपने को सँभालकर धीरे-धीरे बोले “महानायक ! पाटलिपुत्र में ऐसा कौन होगा जिसने यशोधवल की विमल कीर्चि न सुनी हो ? आप भ्रम में पड़कर ही इस कपोतिक संघाराम में हत्यारे का पता लगाने आए हैं। संघाराम संसारल्यागी निरीह भिक्खुओं का आश्रम है। यहाँ कभी नर- घाती पिशाच को ठिकाना मिल सकता है ? पुत्रहंता कह कर आपने जिनका नाम लिया है वे उत्तरापथ के बौद्ध-संघ के एक स्थविर हैं । आर्यावर्त्त में बंधुगुप्त का नाम कौन नहीं जानता ? भला, ऐसा बोधि- सत्पपाद ऋषिकल्प पुरुष कभी नरघाती हो सकते हैं ? आप. कहते क्या है ?" यशोधवल-महास्थविर! आप मेरे इन पके बालों पर विश्वास कीजिए । बिना विशेष प्रमाण पाए यशोधवल देवस्थान में आकर उत्पात