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पृष्ठ:शशांक.djvu/२१५

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(१९७) तरला -तब तो फिर तुम जा चुकीं। यूथिका-अच्छा तो उनसे जाकर कह दो कि वे जो-जो कहेंगे मैं करूँगी। तरला-अच्छा, तो फिर मैं आऊँगी। तरला यूथिका को गले लगा और सेठ के घर के और लोगों से विदा हो अट्टालिका के बाहर निकली। सेठ के घर के द्वार से निकल तरला ने देखा कि बसंतू की माँ कहीं से लौट कर आ रही है। वह उसे देखते ही हँस कर बोली “बसंतू की माँ, मुझसे रूठ गई हो क्या ?" बसंतू की माँ तो पहले से ही खलबलाई हुई थी। जब तक झगड़े में उसकी पूरी जीत न हो जाय तब तक वह बैठने वाली नहीं थी। वह तरला की बात सुन गरज कर बोली "अरे तेरा सत्यानाश हो, सबेरे-सबेरे तुझे कोई काम-धंधा नहीं जो तू घर-घर झगड़ा मोल लेने निकली है ?" तरला ने देखा कि बसंतू की माँ के समान कलहकलाकुशल स्त्री से पार पाना सहज नहीं है, व्यर्थ समय खोना ठीक नहीं । उसने बहुत सी मीठी-मीठी बातें कह कर बसंतू की माँ को अपने पराजय का निश्चय करा दिया। इसके पीछे वह दोनों दंडघरों के साथ पालकी की ओर चली गई। बसंतू की माँ भी गर्जन-तर्जन छोड़ कुछ बड़बड़ाती हुई सेठ के घर में घुस गई।