पृष्ठ:शशांक.djvu/२२९

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(२११) कि तुम प्राचीन मगध का मान, इस प्राचीन साम्राज्य का मान, अपने पुराने महानायक का मान रखोगे । समुद्रवत् मेघनाद के तट पर तुम्हारे बाहुबल की परीक्षा होगी, मेघनाद के काले जल को शत्रुओं के रक्त से लाल करना होगा, वैरियों की वधुओं की माँग पर की सिंदूर रेखा मिटानी होगी । मागव वीरो ! सन्नद्ध हो जाओ।" गीत बंद हुआ। तीस सहन कंठों से फिर भीषण जयध्वनि उठी। सेनापति के आदेश से सेनादल शिविर की ओर लौटा । यशोधवलदेव धीरे-धीरे भट्ट के पास जा कर बोले “यदु ! हरिषेण का गीत आज उतना अच्छा क्यों न लगा ?" यदु ने चकपका कर कहा “मैंने तो भरसक चेष्टा की।" यशोधवलदेव ने कहा "फिर न जाने क्यों नहीं अच्छा लगा ? उस दिन स्कंदगुप्त के गीत ने जैसा मर्मस्थल स्पर्श किया था वैसा आज यह गीत न कर सका।" भावी विपत्ति की आशंका से वृद्ध महानायक का हृदय व्याकुल हो उठा । सब लोग शिविर से नगर की ओर लौट पड़े।