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पृष्ठ:शशांक.djvu/२५२

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(२३४) की संख्या बहुत थोड़ी बता कर नरसिंहदत्त और वीरेंद्रसिंह ने उन्हें रोक रखा। शिविर से थोड़ी ही दूर पर सेना ने अड्डा जमाया। नरसिंह की पदातिक सेना पर्वत की चोटियों और संर्कीर्ण पथों पर अधिकार जमा कर बैठी। वीरेंद्र सिंह और शशांक अश्वारोही सेना लेकर पर्वत की घाटी में जा छिपे। भास्करवर्मा जब घाटी पार करने के लिए बढ़े नरसिंहदत्त ने अपनी पदातिक सेना लेकर उन्हें कई बार पीछे हटा दिया। कामरूप सेना हार कर पीछे हट रही थी इतने में शशांक और वीरेंद्र सिंह के अश्वारोही उस पर बिजली की तरह जा पड़े। भास्कर वर्मा की सेना ठहर न सकी, तितर-बितर हो गई। कई प्रभु-भक्त सामंतों ने जब देखा कि युद्ध अब समाप्त हो गया तब वे भास्करवर्मा को जबरदस्ती हाथी पर बिठा कर रणभूमि छोड़ कर भागे । युवराज शशांक और वीरेंद्रसिंह ने भागती हुई शत्रु सेना का पीछा करके हजारों सैनिकों को बंदी किया। सैकड़ों वीर मारे गये । पचीस सहस्र की चौथाई सेना भी कामरूप लौट कर न गई। युद्ध समाप्त हो जाने पर कर्तव्य निश्चित करने के लिए युवराज ने मंत्रणा सभा बुलाई। शंकरनद के किनारे भास्कर वर्मा के शिविरों में युवराज, वीरेंद्र सिंह, नरसिंहदत्त और गौड़ देश के सामंत लोग एकत्र हुए। शशांक ने पूछा “कब क्या करना चाहिए ? कामरूप पर चढ़ाई करना उचित होगा या नहीं ?" वीरेंद्र -यही मुट्ठी भर सेना लेकर ? असंभव ! नरसिंह०-अठारह सहस्र सेना लेकर तो एक लाख सेना भगा दी गई और कामरूप पर चढ़ाई करना असंभव है ? वीरेंद्र०-तुम लोग पागल हुए हो ? पर्वतों से घिरे हुए कामरूप देश पर चढ़ाई एक लाख-सेना लेकर भी नहीं हो सकती और नीलाचल पर आक्रमण करने के लिए तो नावों का बहुत बड़ा बेड़ा भी चाहिए।