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पृष्ठ:शशांक.djvu/२६

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माधवगुप्त और चित्रा से पता मिला कि संध्या समय कुमार और कोल सेनानायक लल्ल अस्त्रागार में थे तब लोग इधर आए । सम्राट और पट्टमहादेवी कुमार को न देखकर अधीर हो रही थीं। महादेवी मन ही मन सोचती थीं कि चंचल बालक कहीं बढ़े हुए सोन नद की धारा में न जा पड़ा हो। भट्ट कुमार को गोद में उठाकर अस्त्रागार के बाहर ले चला ! बालक किसी तरह नहीं जाता था । वह बूढ़े भट्ट से हाथा- पाई करने लगा और कहने लगा “मैं लल्ल से आर्यसमुद्रगुप्त का हाल सुनता था, मैं इस समय न जाऊँगा।” इसपर लल्ल भी समझाने- बुझाने लगा। पर कुछ फल न हुआ। अंत में भट्ट ने वचन दिया कि मैं कल आर्यसमुद्रगुप्त की कथा गाकर सुनाऊँगा। कुमार शांत हुआ और परिचारक उसे लेकर चले। बूढ़ा लल्ल भी उनके पीछे-पीछे हो लिया । जो वृद्ध संध्या समय कुमार के पास खड़ा था वह मगधसेना का एक नायक था। वह वर्वर जातीय कोलसेना का अध्यक्ष था और और आप भी कोल जाति का था। उसका नाम था लल्ल । लल्ल ने बहुत से युद्धों में साम्राज्य की मर्यादा रखी थी। बुढ़ापे में लड़का पाकर महासेनगुप्त ने.लल्ल को उसका रक्षक नियुक्त किया था। वही उसका लालन-पालन करता था । शशांक लल्ल से बहुत हिल गया था और उसे 'दादा' कहा करता था।