पृष्ठ:शशांक.djvu/२६०

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(२४२) विनय०-महादेवी की आज्ञा से महामंत्रीजी ने एक ज्योतिषी भेजा है। महादेवी-ज्योतिषीजी कहाँ हैं ? विनय०-उन्हें मैं गंगा द्वार के बाहर बिठा आया हूँ। महादेवी-उन्हें यहाँ ले आओ। विनयसेन प्रणाम करके चले गए और थोड़ी देर में एक वृद्ध ब्राह्मण को साथ लिए लौट आए । ब्राह्मण देवता श्यामा मंदिर के सामने एक कुशासन पर बैठे। महादेवी ने सामने जाकर उन्हें प्रणाम किया । ब्राह्मण ने उन्हें अपना हाथ दिखाने के लिए कहा। बहुत देर तक महादेवी का हाथ देख कर ब्राह्मण ने कहा “देवी ! आपको थोड़े ही दिनों में कुछ कष्ट होगा, पर वह कष्ट बहुत दिनों तक न रहेगा।" महादेवी-मेरा पुत्र तो कुशल-मंगल से घर लौट आएगा न । गणक ने भूमि पर कई रेखाएँ खींची, फिर थोड़ी देर पीछे वे बोले “युवराज युद्ध में विजय प्राप्त करके लौटेंगे। उन्हें गहरी चोट आएगी, पर उस चोट से उनका कुछ होगा नहीं।" "कितने दिनों में लौटेंगे ?" "अभी बहुत दिन हैं।" "मेरे जीते जी तो लौट आएँगे न ? मैं उन्हें देखू गी न?" "हाँ, हाँ! आप राजमाता होंगी।" महादेवी संतुष्ट होकर ज्योतिषीजी की विदाई का प्रबंध करने के लिए अंतःपुर में गई। अवसर पाकर तरला यूथिका का हाथ पकड़े उसे खींचती-खींचती ज्योतिषी के पास ले आई और कहने लगी "महा- रान ! इस स्त्री का कहीं विवाह नहीं होता है, देखिए तो इसका विवाह कभी होगा।