(२४४ ) से देखने के लिए कहा। ज्योतिषीजी हाथ देख ही रहे थे कि सम्राट ने पूछा “मेरे जीवनकाल में शशांक लौटकर आ जायेंगे या नहीं ?" ज्योतिषी सम्राट का हाथ देखते देखते कुछ अधोर से हो पड़े और भूमि पर बैठकर रेखाएँ खींचने लगे । सम्राट ने फिर पूछा “क्या हुआ ?" ज्योतिषी जी ने कुछ सहमकर उचर दिया “कुछ समझ में नहीं आता है। सम्राट सिर नीचा किए उदास मन मंदिर के आँगन के बाहर गए। बारहवाँ परिच्छेद मेघनाद तट का युद्ध. की सहायता शंकर के तट पर युवराज की दुरवस्था का संवाद पाकर यशोधवल- देव ने दो सहस्र अन्धारोहियों के साथ वसुमित्र को युवराज के लिए भेजा । उन्होंने स्वयं मेघनाद के उस पार आक्रमण किया और बिना किसी विघ्न बाधा के मेघनाद के पूर्वीय तट पर शिविर स्थापन किया । पहले तो दो तीन लड़ाइयों में विद्रोहियों ने बड़े साहस के साथ यशोधवल का मार्ग रोका । जलयुद्ध का अभ्यास न होने के कारण मागध सेना घबरा उठी। बड़ी कठिनता से गौड़ नाविकों ने मगध सेना का मान रखा । युद्ध की अवस्था देख यशोधवलदेव को कुछ आशंका हुई । पदातिक सेना को शिविर में छोड़ तीन सहस्र गौड़ीय
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