(३११) शक्र०-अभी, अभी दो चार पल भी न हुए होंगे। दोनों चट बंधुगुप्त की खोज में बाहर निकले। छठा परिच्छेद बोधिद्रुम का कटना राजपुरुष चारों ओर बंधुगुप्त का पता लगाने लगे, पर वह पकड़ा न गया। एक नागरिक बंधुगुप्त को पहचानता था। उसने बंधुगुप्त को महाबोधि के पथ पर दक्षिण की ओर जाते देखा था। दो दिन पीछे राजपुरुषों को उससे पता लगा कि बंधुगुप्त नगर से भाग गया सुनते ही स्वयं शशांक, यशोधवलदेव, वसुमित्र और अनंतवा पाटलि- पुत्र से 'महाबोधि विहार' की ओर चले। दोपहर का समय है। महाविशाल बोधिद्रुम नामक पीपल के पेड़ की छाया में बैठे विहारस्वामी जिनेंद्रबुद्धि और संघस्थविर बंधुगुप्त बातचीत कर रहे हैं। उनके सामने ही वज्रासन था। कई भिक्खु आस पास खड़े हुए यात्रियों से वज्रासन की पूजा करा रहे थे। बोधिद्रुम के पीछे के महाविहार से असंख्य शंख और घंटों की ध्वनि तथा धूप की सुगंध आ रही थी। इतने में एक भिक्खु दौड़ा दौड़ा आया और कहने लगा “प्रभो ! विष्णुगया से एक अश्वारोही आवश्यक संवाद लेकर आया है, उसे यहाँ ले आऊँ ?" जिनेंद्रबुद्धि ने सिर हिलाकर आज्ञा सूचित की ! भिक्खु चला गया और थोड़ी देर में एक अश्वारोही
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