पृष्ठ:शशांक.djvu/३७५

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(३५६) में अपनी शक्ति बराबर बढ़ाते रहना। समुद्रगुप्त के वंश का प्रताप फिर चमकेगा। बोलते बोलते महानायक शिथिल हो पड़े। सम्राट के नेत्रों से अश्रुधारा छूट रही थी। यशोधवल देव ने फिर आँखें खोली और कहने लगे "पुत्र, मेरे लिए दुखी न हो। मैं बहुत दिन इस संसार में रहा। लतिका कहाँ है ?" लतिका रोती हुई अपने दादा के पास आ खड़ी हुई। सैन्यभीति को अपने पास बुला लतिका का हाथ उन्हें थमा वृद्ध महानायक सम्राट से बोले, "पुत्र ! लतिका को मैंने. समरभीति के पुत्र को अर्पित किया। शुभ मुहूर्त में इन दोनों का विवाह करा देना और विवाह के समय वह कंगन इसके हाथ में पहना देना । मुझे अब और कुछ कहना नहीं है। मैं आनंद से -पर एक बात-तुम अपना विवाह-”। सम्राट का गला भरा हुआ था। उनके मुँह से एक शब्द न निकला । वृद्ध महानायक की चेष्टा भी क्रमशः मंद होने लगी। दूसरे दिन यह संवाद फैल गया कि रोहिताश्वगढ़ के अधीश्वर का परलोकवास हो गया । महानायक के जब सब कृत्य हो चुके तब प्रतिष्ठानपुर से दूत संवाद लेकर आया कि हर्षवर्धन ने कान्यकुब्ज पर चढ़ाई की है। सम्राट ने पाटलिपुत्र की तैयारी की। वृद्ध अमात्य . विधुसेन की प्रार्थना पर सम्राट ने रोहिताश्वगढ़ की रक्षा का भार सैन्यभीति को प्रदान किया। विधुसेन और धनसुख के हाथ में दुर्ग सौंपकर वीरेंद्र- सिंह और सैन्यभीति सम्राट के साथ पाटलिपुत्र गए। हर्ष की चढ़ाई का संवाद पाते ही सम्राट की आज्ञा का आसरा न देख सेनापति हरिगुप्त सेना सहित पश्चिम की आर चल पड़े । राजधानी में लौटकर शशांक चरणीद्रि की तैयारी करने लगे। इधर महाधर्माधिकार नारायणशर्मा · चाहते थे कि सम्राट राजधानी न