( २३ ) मात्रा की ओर कड़ी दृष्टि लगाए था। उसके साथ जो बालक आया था वह दूकान के सामने राजपथ पर कई धूलधूसर काले काले लड़कों के साथ खेल रहा था। इसी बीच में लंबे डील का एक गोरा आदमी चावल और घी लेने दूकान पर आया। घी और चावल के साथ उस रमणी ने और न जाने कितनी वस्तुएँ वेच डालीं। सब सौदा हो चुकने पर जब उस पुरुष ने चावल, दील, घी, नमक, आदि सामग्री कपड़े के छोर में बाँधी तब उसने देखा कि सब सामान एक आदमी से न जायगा। यह देख सदयहृदया रमणी उसकी सहायता करने के लिये दूकान से उठी। तेली यह देख घर से निकल आया और उस आदमी से कहने लगा "मैं आप का सब सामान आप पहुँचाने के लिये तैयार हूँ अथवा अपने इस लड़के को आप के साथ किये देता हूँ। मैं अपनी स्त्री को एक बिना जाने-सुने आदमी के साथ घर से बाहर नहीं जाने देना चाहता।" धीरे-धीरे बात बढ़ चली और मुठभेड़ की नौबत दिखलाई देने लगी। अंत में उस शांतिप्रिय रमणी ने बीच में पड़ कर निबटेरा कर दिया। यह स्थिर हुआ कि बालक उस पुरुष के साथ सब सामान लेकर जायगा। बालक सिर पर भारी गठरी रखे उस आदमी के पीछे-पीछे धीरे- धीरे चला । वह आदमी लंबे-लंवे डग मारता आगे-आगे चलता जाता था और पीछे फिर-फिर कर देखता जाता था कि लड़का कितनी बीच-बीच में लड़के को पीछे न देख उसे लौटना भी पड़ता था। वह आदमी जो मार्ग पकड़े जाता था वह अब नगर के बाहर होकर नदी तट की ओर जाता दिखाई पड़ा । उसके दोनो ओर वृक्षश्रेणी छाया डाल रही थी। एक ओर तो गंगा की चमकती हुई बालू दूर तक फैली थी, दूसरी ओर हरी-हरी घास से ढंकी भूमि यी । बालू के मैदान के बीच उत्तर की ओर दूर पर भागीरथी की क्षीण जलरेखा दिखाई देती थी।
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