पृष्ठ:शशांक.djvu/४९

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( २६ ) इतने में मगध सेना का वह दल आ पहुँचा और भीड़-भाड़ देख अधि- नायक की आज्ञा से रुक गया । रथ पर के मनुष्य ने झट आगे बढ़ कर अधिनायक से पूछा “तुम मुझे पहचानते हो ?” सेनानायक बोला "नहीं।" रथ पर के मनुष्य ने सिर पर से शिरस्त्राण हटा दिया । बंधन- मुक्त, पिंगलवर्ण, कुंचित केश उसके कंधों और पीठ पर छूट पड़े। सेनानायक ने झट विनीत भाव से अभिवादन किया । ममध सेना ने जय ध्वनि की। नागरिकों ने मी एक स्वर से जयनाद किया । रथ पर से कूदने वाले सचमुच कुमार शशांक ही थे। लौहवर्म से अंग-प्रत्यंग आच्छादित रहने के कारण चौदह वर्ष के कुमार कोई छोटे डील के योद्धा जान पड़ते थे । कुमार ने ज्यों ही पूछा कि "क्या हुआ ?" त्यों ही एक साथ कई नागरिक बोल उठे कि विदेशी सैनिक एक बालिका को पकड़े लिए जाते थे, जब उनसे छोड़ने के लिए कहा गया तब वे नागरिकों पर टूट पड़े और उन्हें मारने लगे। जिन्होंने चोट खाई थो वे अपनी-अपनी चोटें दिखाने लगे। अस्त्रहीन प्रजा पर अस्त्र के आघात देख मगध की सेना भी भड़क उठी। सारथी का प्राणहीन शरीर जब सैनिकों ने देखा तब तो उन्हें शांत रखना अत्यंत कठिन हो गया । कुमार की आज्ञा से सेनानायक स्थाण्वीश्वर के पड़ाव की ओर चले । पर जब थानेश्वर वाले अपने-अपने डेरों में से पत्थर फेंकने लगे तब विवश होकर वे लौट आए। अब कुमार की आज्ञा से मागधी सेना ने श्रेणीबद्ध होकर शिविरों पर आक्रमण किया। स्थाण्वीश्वर के अधिकांश सैनिक उस समय मद्य पीकर मतवाले हो रहे थे। वे तो बात की बात में पराजित हो गए । जिन्हें अपने तन की सुध थी वे भाग खड़े हुए। जो उन्मच थे वे भूमि पर पड़े-पड़े प्रहार सहते रहे । बहुत से बंदी बना लिए गए। कुमार के आदेश से बालिका अपने भाई सहित बंधन से छुड़ा कर लाई गई। कुमार दोनों को रथ पर बिठा कर नगर की ओर चल पड़े । सेना भी अपने ठिकाने आ पहुँची ।