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पृष्ठ:शशांक.djvu/६१

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(४१) सैनिक-चंद्रेश्वर । महा. -निवास कहाँ है ? सैनिक-जालंधर नगर में । महा०-तुम थानेश्वर की सेना में हो ? सैनिक ने अभिवादन किया। महादेवी ने फिर पूछा “वाराणसी से पाटलिपुत्र आते हुए तुमने कोई दासी मोल ली थी ?" सैनिक-हाँ पाटलिपुत्रवाले उसे मुझसे छीन ले गए। महा० -तुमने उसे किस से मोल लिया था ? सैनिक-मार्ग में एक बनिये से । महा०-~कितना मूल्य दिया था ? सैनिक-दस दीनार* । महा०-अच्छा जाओ। विनयसेन ! उस लड़की को तो ले आओ। दोनों अभिवादन करके बाहर गए । एक परिचारक पट हटा कर आया और अभिवादन करके बोला "द्वार पर सम्राट महासेनगुप्त खड़े हैं ।" इतना सुन कर भी प्रभाकरवर्द्धन ज्यों के त्यों आसन पर बैठे रहे । महादेवी ने यह देख क्रुद्ध होकर कहा “पुत्र ! तुम्हारी बुद्धि एकबारगी लुप्त हो गई ? द्वार पर तुम्हारे मामा खड़े हैं, जाकर उन्हें आगे से ले आओ।" प्रभाकरवर्द्धन का चित्त ठिकाने आया। वे घबरा कर सिंहा- सन से उठ पड़े और द्वार पर अपने मामा को लेने गए। इसी बीच में परिचारकों ने एक और सिंहासन लाकर रख दिया। घर में आकर दोनों बैठ गए।

  • दीनार-गुप्तकाल में यह सोने का सिका चलता था। किसी समय फारस

से लेकर रोम तक इस नाम की स्वर्णमुद्रा प्रचलित थी। प्राचीनकाल में उस नाम की एक ताम्रमुद्रा भी कश्मीर आदि में चलती थी-अनुवादक