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पृष्ठ:शशांक.djvu/६२

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( ४२ ) महा०-भैया ! आप यहाँ चाहे जिस लिए आये हों, थोड़ा बैठे जाइए । मैं एक विषय का विचार कर रही हूँ, आप भी सुनिए । महाप्रतीहार विनयसेन उस बालिका को लेकर घर में आए । विनयसेन के आदेशानुसार बालिका ने तीनों को प्रणाम किया । महा०-तुम्हारा नाम क्या है ? बालिका-गंगा। महा०-तुम किस जाति की हो ? बालिका-क्षत्रिय । महा०-तुम्हारे पिता का नाम क्या है ? बालिका के नेत्र गीले हो गए। उसने उत्तर दिया “यज्ञवर्मा।" महादेवी ने उसकी आँखों में आँसू देख उसे ढाढ़स बँधा कर कहा "बेटी डरो मत । अब तुम से कोई कुछ नहीं बोलेगा । तुम रहने वाली कहाँ की हो?" बालिका के कोमल कपोलों पर टप टप आँसू गिरने लगे, उसका गला भर आया । वह बोली "चरणाद्रिदुर्ग।" अब तक सम्राट महासेनगुप्त पत्थर की मूर्ति बने चुपचाप सिंहासन पर बैठे थे। जो कुछ बातचीत हुई उसका बहुत सा अंश उनके कानों में नहीं पड़ा था। पर 'यज्ञवा' और 'चरणाद्रिदुर्ग' सुनते ही वे चौंक पड़े। वे बालिका से पूछने लगे "क्या कहा, चरणाद्रिगढ़ ? तुम्हारे पिता का नाम यज्ञवर्मा है ? कौन यज्ञवर्मा ? मौखरिनायक शार्दूलवर्मा के पुत्र ?" बालिका ने रोते-रोते कहा “हाँ।" सम्राट और कुछ कहा ही चाहते थे कि बीच में महादेवी ने महाप्रतीहार को प्रधान महल्लिका को बुलाने की आज्ञा दी। विनयसेन तीन बार अभिवादन करके बाहर गए और पल भर में महल्लिका को साथ लिए लौट आए। महादेवी ने उससे कहा “बालिका को ले जाओ, इसे चुप कराके फिर ले आना।" ?