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पृष्ठ:शशांक.djvu/७६

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के पैरों तले तलवार रख उसने कपड़े के खूँट से एक स्वर्णमुद्रा निकाली और तलवार के ऊपर रख दी । दुर्गस्वामी ने तलवार उठाकर फिर वृद्ध के हाथ में दे दी । वृद्ध एकबार फिर अभिवादन करके पीछे हट गया। उसी समय भीड़ में से एक और लंबे डील के अस्त्रधारी वृद्ध ने आकर गढ़पति का अभिवादन किया । रग्घू ने पुकार कर कहा “सेनापति सिंहदत्त"। उसने भी तलवार और स्वर्णमुद्रा गढ़पति के सामने रखी और गढ़पति ने उसी प्रकार तलवार उठाकर हाथ में दी । सिंहदत्त के पीछे हटने पर भीड़ में से एक अत्यंत वृद्ध दो युवकों का सहारा लिए आता दिखाई पड़ा । उसे देखते ही गढ़पति सिंहासन से उठ पड़े और बोले "कौन, विधुसेन ?" | दुर्गस्वामी का कंठस्वर सुनते ही वृद्ध ज़ोर से रो पड़ा और उनके पैरों तले लोट गया । यशोधवलदेव ने उसे पकड़कर उठाया । उनकी आँखों में भी आँसू आ गए थे, और गला भर आया था । उन्होंने कहा--"विधुसेन ! कीचिंधवल तो चल ही बसे । तुमने भी आना जाना छोड़ दिया" । वृद्ध ने रोते रोते कहा --"प्रभो ! मैं किसे लेकर आता ? कौन मुँह आपको दिखाता ? अपना सर्वस्व तो मैं मेघनाद ( मेगना नदी) के उस पार छोड़ आया । केवल कुवँर कीर्तिधवल को ही मैं वहाँ नहीं छोड़ आया, अपने दो पुत्रों को भी छोड़ आया । मेरे पहाड़ी प्रदेश में न जाने कितने अपने पुत्र,अपने पिता और अपने भाई को छोड़ आए । इन दोनों बालकों को छोड़ मेरा अब इस संसार में और कोई नहीं है । जयसेन का मृत्यु-संवाद पाकर मेरी पुत्रवधू ने अपने दो बच्चों को मेरी गोद में डाल अग्नि में प्रवेश किया। तब से मैं युद्ध व्यवसाय और राज्य के सब काम काज छोड़ इन दोनों को पाल रहा हूँ"। इतना कहते कहते वृद्ध अक्षपटलिक * चिल्ला चिल्लाकर रोने लगा । दुर्गस्वामी ने किसी प्रकार


  • अक्षपटलिक = राजस्व विभाग का सचिव,अर्थसचिव ।