पृष्ठ:शशांक.djvu/८६

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(६६ ) "बाबा ! इस मार्ग से जाता कौन है ?" यह कहकर वह वृद्ध के पास लौट गया और बाला “प्रभो ! प्रासाद का घाट तो यही है, पर घाट पर कई लड़के खड़े हैं। उनमें से एक की बातचीत तो राजपुत्र की सी है। वह कहता है कि इस मार्ग से जनसाधारण के जाने का निषेध है ।". वृद्ध यशोधवलदेव ने हँस कर कहा "वीरेंद्र, लड़का ठीक कहता है।" वीरेंद्र -तब क्या नाव पर फिर लौट चलेंगे ? यशो०-न, इसी मार्ग से जाये गे । विशेष-विशेष अमात्यों और राजवंश के लोगों को छोड़ कर कोई गंगा के इस घाट की ओर नहीं आने पाता । बात यह है कि अंतःपुर की स्त्रियाँ प्रायः यहाँ गंगा स्नान करने आती हैं । इसी लिए उस लड़के ने तुमसे इस मार्ग से न जाने को कहा था । अच्छा अब तुम आगे-आगे चलो, मेरे लिए यहाँ कोई रोक. टोक नहीं है। सब लोग सीढ़ियाँ चढ़ कर घाट के ऊपर आए । यशोधवल ने देखा कि एक बालक उनका मार्ग रोकने के लिए बीच में आकर खड़ा है, दूसरा बालक और बालिका बैठे हैं । बालक ने पूछा “आप कौन हैं ?" यशो०-मैं रोहिताश्व का गढ़पति हूँ। मेरा नाम है यशोधवल । शशांक-आप कहाँ जायँगे? यशो ०-सम्राट् से मिलने के लिए प्रासाद के भीतर जाना चाहता हूँ। शशांक-आप क्या नहीं जानते कि इस मार्ग से होकर साधारण लोग नहीं जा सकते। आप उधर से घूम कर दक्खिन फाटक से होकर जायँ । उसी मार्ग से आप प्रासाद में जा सकते हैं । वीरेंद्र-अच्छा, यदि हम लोग इसी मार्ग से जायँ तो क्या तुम हम लोगों को रोक लोगे ?