पृष्ठ:शशांक.djvu/८८

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(६८) लोगों का जन्म नहीं हुआ था। उस समय हम लोग आपके चाचा के पुत्र देवगुप्त को ही साम्राज्य का भावी अधीश्वर जानते थे। युवराज ! साम्राज्य के और-और महानायकों के पास जो है वह मेरे पास नहीं है इसी लिए तो मैं सम्राट के पास जाता हूँ।" शशांक चुपचाप वृद्ध के लंबे डीलडौल और उसके शरीर पर पड़े हुए घावों के असंख्य चिह्नों की ओर देख रहे थे। वृद्ध की बात पूरी होने पर उन्होंने कहा "अच्छा ! आप हमारे साथ आएँ।" दसवाँ परिच्छेद तरला का दूतीपन उस समय पाटलिपुत्र नगर के किनारे-किनारे बहुत सी बस्ती हो गई थी। प्राचीन नगर के प्राचीर के भीतर स्थान की कमी होती जाती थी। स्थानाभाव के कारण नगर के दरिद्र श्रमजीवी बाहर बसते थे । बहुत दिनों से नगर प्राचीर के पूर्व और दक्षिण ओर कई टोले बस गए थे। नागरिक उस भाग को उपनगर कहा करते थे। नगर के उचर और पश्चिम भागीरथी और सोन की धारा बहती थी। बहुत से लोग इन नदियों के पार भी बसते थे और नित्य सबेरे काम करने नगर में आते और संध्या को लौट जाते थे। दक्खिन के टोले में एक पुराने मंदिर के सामने कई बौद्ध भिक्खु घांस के ऊपर बेठे बातचीत कर रहे थे। मंदिर के पीछे कुछ दूर तक ऊँचा टीला सा चला गया था जिस पर नए-पुराने