पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१००

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शिवसिंहसरोज

शिवसिंहसरोज । AC फल्में ना सुरेससे जा दिन जुन कई बाँधवी बघेला की॥ १ ॥ यार्थी जीति सुजस विभा दल बैरिन के पति को रंगे गह गंभे अलकेस के । कहै घनस्याम रस दूसरो पुल के गतेिं गुरू गा तो कैों डमरू महेस के ॥ इड़ाबान हरें तड़ितान को गरव गाँ ग्रासमान फारें मन माँ अमेरेस के पारम्रार धार में धी है. गंगधार कैों रूकत नगारे बारानसी के नरेस के ॥ २ ॥ छाजू राधे रावरे को जानन धिक्यो घनस्याम तु मेम की घुमारी सी धरा धर्ग । रति की रमा की उरषसी की तिलोत्तमा की दीपति दमा की शाम राखी है घरा रै ॥ दीप को दवाइ के सरोज सकुचाइ के 8 आरसी निकाई ताकी वाँधी है बराबरें । छाइ रतना कर छपाइ के प्रभाकर को टि के ऊपाकर के ऊपर हरा परे ॥ ३ ॥ बैठी चदि चाँदनी में चन्द्रमा विलोकन को उन्नत उरोजन ते उबरे हरा परै । दमा छमा केतक तिलोत्तमा है घनस्याम रमा रति रूप देखि धस के धरा परे ॥ जेवर जड़ा मौर जगमगे अंगन ते नेघर जड़ाऊ तेज तरुन तरा परै । रचेमुखमंडलमौंपन ते मैदान छवि के छपाकर के ऊqर छब परै ॥ ४ ॥ उमर्डि पटूि घन आावत अटान चोट छनय जोतिछटा छटकि छटकि जात। सोर करें चातक चकोर पिक चर्चा और मोर ग्रीष मोरि मौरि मटकि मटकि जात ॥ साघन न गवन नो है घनस्याम जू को गगन लौं आप पाँय पटकि पटकि ज!त । दिये बिरहानत की तपनि पुषार उर हार गजमोतिन को चटकि च िजात ॥ ५ ॥ चंद अरविंद 6िव चिह्म फनिन्द शुरू कुन्दन गयम्द कुन्द फली निरति हैं । चम् संम्पा सम्पुट कदलि घनश्याम कहाँ फुकुम को अंगंग भंग ना करति है ॥ केहरी कeत पिक पल्लव क १ दूसरा रसबीररस । २ इन्द्र ।.३ चंद्रमा से ४ किरों से ।