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पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१०२

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शिवसिंहसरोज

१७२ चन्द कवि प्राचीन (१)

मंडन मही के अरि खेडे पृथीराज वीर तेरे डर बैरिवधू डग
डग डगे हैं।
देस देस के नरेस स सुरेस जिमि काँपत फनेस सुनि वीररस पगे हैं॥
 तेरे खाति-मंडुलन कुंडल बिराजत हैं कहै कवि चन्द यदि भाँति जेब जगे हैं।
सिन्ध के वकील संग मेरु के बर्फीलहि ठं मान’ कहत कई क़ान आनि लगे हैं॥ १ ॥
महाराज तेरी सब कीरति वखाने कवि चन्द यह केवल अकीरत्ति
बखाने हैं।
धरे ने देखी देखि हमको बताइ दई हिरे ने सुनी
जैसी हमहूँ पिछाने हैं।॥
कच्छपी के दूध ही के सागर पै ताकी गत बाँझसत गे बिलि गावत यों जाने हैं ।
तामें केते बड़े सस सींग के धब्रुप वारे रीति रीति तिन्हैं मौज दे के स्नमाने हैं ॥ २ ॥
दोहा-सींक बान पृथिराज की, तीन बाँस गजचारि ।
लगत चोट चौहान की, उड़त तीस मन गारि॥ १ ॥
धर पलच्यों पलटी ध, पलव्यो हाथ कपान ।
चन्द कहै पृथिराज सोंजिन पर चौहान : २॥
बारह बस .वतीस गज, अंगुल' चरि ओमान ।
इतने घर पर साह है, मत्ति सौ चौहान t ३ ॥
फेरि ने जननी जनमिहै, फेरी ना खैंची कमान । .
सात बार तुम कियो, अब ना चूक चौहान ४॥

( . पृथ्वीराजंरायसा पद्मावतीखंड ) छहैं पिंय थिराज नरेस जोगे लिख़ि कागढ़ दिनेई। लगन वार गुरु चौथि चैन दि दरस घु तिों ॥ हरि से दसवीं, मवि सम्वत प्रामानह । १ कोनों में- ।२ कंgहीं के दूध नहीं हों। ३ दिया ।’ उन्होंने । क