पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/११२

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शिवसिंहसरोज

काम सरासन सोभित ता महँ हीन कलंक कला सत्र सारै॥ तारासमूह लसै तिदि संगन भोग कहूँ मन मोद सँचारै। को यह चंद बिना निसि चन्दन जोन्ह सो जोति के जाल वगारै॥१॥

(श्रृंगारसार)

चिते परजंक में निसंक अंक सोभित है अम्बरई अम्बर विराजत अनूपा को। वलया जलधिजाल कज्जल जलदमाल विपेन वि- साल चै विलास थल रूप को॥ कलाधर तरनि तरौना पौन वीजन है पावक को जावक जखदार दूपा को। चंदन नखतभार मोतिन के हार सब विस्वतत्वसार है सिंगार विस्वरूपया को ॥१॥ यह सरवरी सरवरी न ठिठुर नेकु गई अरवरी सी उगरि भानु भीत मै। बखत बख़त बदछीन भये छिन छिन मोतीमाल चन्दन दुराय जात सीत मै॥ बंद कै कपाट छलछन्द सो अँधेरे मौन गौन को दुरायो जब गायो काम-गीत मै। रो में कहा कुर कुकुरा के दुखरा को तौलो कूकि कै निगोड़े ने जगायो प्रानपीतमै ॥२॥ सुघर छबीले छकि सुरत छवीली साय करत हरत इन्द आ नंद के नंद मैं। हसि हसि विहसी विहसी कसि कसि कोरे कोरे कोरे गातन को धरत विसद में॥ चुम्बन चतुर चारु तारन हजा- रन के चन्दन किये हैं रद छद रदछद में। हद हद मदन मचत कद कद सद गदगद बचन रचत मोद मद मै॥३॥

१८४ चलखी
पद

मोरमुकुट कुएडल भलकन अलकन उर मन मेरो जुगु हो। मुरलीधुनि अवनन सुनि सजनी कामधाम सब को विसरो॥ काहे को लोकलाज आवै सखि काहू को काहू से काज सरो। चंदसखी सोई बड़भागिनि बालकृष्ण प्रभु वारो वरो ॥१॥ १ अंबरी रंग का 13 व 1 ३ करधनी। वे दोनों पैरों का ।५ रात