पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/११५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
९६
शिवसिंहसरोज

P शिवासिंह सरोज छोठ निछावर ग्रिडूम है ी चतुर्भुज या उपमा लाख लीनी । केसर की छवि कंचन रंग सिं गार के रूम की मंजूरी कीनी . १ ॥ १६२. चंडीदत कवि विरह चिहारी के विकल बिलखत बाल बौरी सी लगति दुख अतिसे मलान दी । चंडीदत्त था। हेि के घर है पग इत उत यूमि के शिी हैं ज ज्य धरी है देह आान की ॥ सि ना भरत फै मिथिल सी दिखाई देत होनी ना मिटाये भि में विधि बतदान की । यहए लपेत्री कारिद जन में भेटी याजु श्ववि में धुरंटी लेटी बेटी श्रुप- भान की ॥ १ ॥ १६३ चरणदास ब्राह्मण पण्डितपुरबले ( 'न रचय द इ1--चारि वेद को द है, गीता को है जीव । परनदास लखेयाप में, तोमैं तेरा पीव ॥ १ ॥ सव जोगन को जोग है, सर्च ज्ञान को ज्ञान ।॥ सर्व सिद्धि की सिद्धि है, तव स्वरन को ध्यान ।म२॥ १६४चतुरजदास २ . मानपति बिहत जमुना कूले । तुध मकरंद के बत भये भ्रमर जे रवि उदय देखि मानो कमल फून ।। करत गुजार मुरली लेंके साँवरो व जव खनत तन-सुधि उ भूले। चतुर्भुजदास जना प्रेमसिंड में लाल गिरिधरन श्रवहरषि भूले॥१। १६५चोवा कवि ( हरि खाद बंदीजन डलमऊवाले ) पालत ये निगमागम सेतु अनीतः के पीतन दंडन हारे । धमेंर दंनिसिमनि वैतिन के मद खंडहरे । १ वेद और शांछन ।