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पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/११७

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शिवसिंहसरोज

शिसिंहसरोज समीर सरसावने 1 फूलि उ लतिका लवंगन की लोनी लोन भूति उटीं डालियाँ कदंब मुख पावने ॥ घxकि चकोर उठे की। कंरि सोर उठे टेरि उठीं सारिका विनोद उपजाघने 1 चटकि गुलाब उठे लटकि सरोजपुंज खटकि मराल ऋतुराज मुनि श्रावने ॥ १ ॥ ( देवीचरित्रसरोजग्रन्थे ) दर्भुज दराज वल मुनि मुनि हरें छलचल की नकल होत नकल न कल भौन । सोई सुनि 8 रन पुरन कैसी जाति लागे कसर न एक अंग आवत अनोखी तीन ॥ याते छितिपाल कवि- ताई की न चाल चलें भूलि जात बुद्धि वल कैसो सब जाल ज़न अकथ कहानी जानी जानी जुगो न याते मति घिल खानी बानी वानी की बखानै कौन ॥ १ ॥ ( त्रिदीपप्रन्थे ) दोहा-विधि नारद सारद हरी, शृंगी ऋषिवर धाम । वामदेव मन खाम करि, बाम वाम के काम \१ ॥ कत्रित । ग्रन्थ ज्ञान यान बनी मधुर उचार दान विद्या के ब्रिधान मान चहत घनो बरी । सुजल बहावै वरि भावते महीन में तप की लता से वेलि सुकृत महा फरी ॥ ऐसे छितिषाल कवि कोविद विपत्ति सहै राजा न.प्रवीन जानो की मति के बरी । रतनलंरी को मोतल घटि करि भादें ताको छोहरी विचार कहें। जौहरीन सौ हरी ॥ २ ॥ . बरव कटि कृस उच बुच नग दृग करि तिय गान । धन्य पुरुष जा उर आस लगत न बान ॥ २ ॥ कमल विवेक विकासत तब लौं मंद। जब लो नयनन देखत तिय- मुख चंद ॥ ४ ॥ १ तोते । २दैत्य ।