पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१२४

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शिवसिंहसरोज

शिवलिंसंरॉजें १०५ २१४गुंलाकिशोर कवि (१ ) .राधा ठकुरानी पास वानी लिये पानी खरी आंस पोसे चेरी चौंर ढ* देवदार सी। औगराग अंगन लंगाइवे को स्थाई रति अंबर अमल लिये फूलने के हर सी ॥ जुगुलकिलोर कहै नन्द के किसोर जहाँ जोरे कर जोहै जोति जोवन की चार सी। मोद के बताइवे को हर को हरा है लिये एक हाथ फूलगेंद एक हार्य आरसी ॥ १ ॥ २१५राजा युगुल किशोर भट्ट (२) कैंथलवाली (अलंकारनिधिग्रंथ ) दोहा-ब्रह्मभट्ट हाँ जाति में, निषट अधीन निदंन। राजापद मोको दियो, महमंदसाह मुजान ॥ १ ॥ तेरो सुख चन्दसम जोति ों उ जान है तेरे नैन सम तेरे नैन लहियलु हैं. । कमल से कंर लाल कंर से कंमल सैौहें भाई- सी कमान नन वान कहियलु हैं ॥ देखत् नखन कंज लोचन सरोज अंछिं मृगन उरंग कांम संय चहियतु है । मुकतां सहित वैन नखंतोतृत चंन्दे मान ससि देखें सुखसुधि गहियतु है ॥ १ ॥ नन नहीं कमल हैं जानि के चै. चकोर चन्द चांति है तेरो मुख है कि चन्द है । । सोहत विराजमान माँग टीको ससि सम राति माँह रवि लखे बाहत अनन्द है ॥ ओसभरे कंज पंर अलि मंडरात देख चाहत मिलन लोभि सुख रसकन्द है । फूलत कमलनैन कजन्ना में कुंजन फैले दंड तरु जहाँ भयो मकरन्दु है i२ ॥ चाँदन के रl चन्दमुवं छवि करि छा सोंहत है स्म और संयमघन साँझ मैंi धन्य है भ्रमर जो सरोजरंस लीवो करे ओट- रस जा सोई , सुा इन्दु समाज में ॥ मैन तो कमल से वे सस १ आनन्द । । २ चकित होते हैं