पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१२७

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शिवसिंहसरोज

१०८ शिवसिंहस्ज २२३. जानकीप्रसाद कधि वनखी ( ३ ) ( रामचन्द्रिकातिलक ) जिन को अवलोकत ही मनरंजन कंजन की रुचि दूरि बहैये । सपालिन मालिन की दुति सालिन अलिन दासन के मन ऑये । निधि सिद्धि असेस के धाम सदा सुख पूरन रन पुन्यन वैये है: प्रग चंदन के गिरिजापति के रघुनंदन राम की कीरति गैये ॥ १ ! २२४. जयकृष्ण कवि। ( चंदसरपंगत ग्रन्थे ) संकर छन्द सारंग दोधक छंद कहिये और मोतीदाम है. तोटक तारलौन जानहु फिरि भुजगी ना ॥' कामिनी मोहन जानिये मैनावली सुन राज । परनिका नीलका सोहै संखनारी थाज , मालती तिलका विमोह दोहा गान आान । सोरठा गाह उगाहा भने उल्लिका पहिचान है. चौपई और आरिल्ल तोमर देखिये मधुभार ? छनुकूल हाकलि चित्रपाई औ पवं गम धार है। अंसारी पद्धरी कहिये फिरि ङ्क्वैया जान । संकर त्रिभंगीविपदा मरहठा फेरि बरखान | लीलावती उपमावली गीय यु पंढी होय है; रोला कुंडलिया कुंडलीभानि रोगिका गनि सोय ॥ रंगी घनाक्षर दूमता यो मतगचंद गनेयू। करख वख़ानौ झूलना जैसे सवैया, . छऊपबतायोंफेरि तो छंद बावनपप्पू, t: सवें रूप बखानि गूंथन दियो दिय दिखाय ॥. ५२ हैं