पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१३५

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शिवसिंहसरोज

१ १६. शिवसिंहसरोज भीम समान को शुद्ध कियो कवि जैत कहे जंग में जस पाया। साह के काजवे पर ल' यो सिर झुष्टि यो धड़ धारु को घायो। १॥ २४६. जलील ( सैयद अब्दुल ज़लील बिलामी ) २ मधमउधारन नपवा सुनि करि तोर । अधम काम की बटि गहि मन मोर ॥ १ ॥ मन वच कायक निसिदिन अधमी काज । करत करत मनु भरिगा हो महराज ॥ २ ॥ बिलंगराप कर बासी मीर जलील । तुम्हरि सरन गईि गाड़े ए निधिसील ॥ ३ ॥ २४७. जशोदानंदन कवि ( बरवै-नायिकाभेद ) मैं लिखि लीनो चैतहि तेरसि पाई । सैबत हय विवि कर के ब्रह्म मिलाइ ॥ बरखे बंदह बरनन नवलाभेद । कृत्त जसोदानंदन कवि को सघद अभेद ॥ बालशु हरि हियरखा उप लाज । पाख मास मां जानि न परि है गाज ॥ तुरुकुिनि जाति हुरुकिनी अति इतराय । कुघन न देइ इंजरैव सुरि मुरि जाई ॥ पिय से मस मन मिलयो जस पैंय पानि। हंसिनि भई सवतिया बिलग़ानि ॥ पीतम तुम् कच्लोहिया हम गज़वेलि। सारस के श्रेस जोरिया फिरg अतेि । १ रण को।२ राह 1.३ इज़ार बंद ४दूध।