पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१३६

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शिवसिंहसरोज

शिवसिंहसरोज ११७ २८ जुगुलप्रसाद चौबै. ( दोहावली ) पट भूपन अनुराग सहज सिंगार जुगुल घर । रसनिधि रूप अनूप बैस ऐस्वर्या गुनन गुर ॥ लीला पटऋतु दान मान मंजुल मनमोदी। भोजन सयनचिहार करें ललिता की गोदी ॥ १ ॥ २४६: जनादेन भट्ट ( वैषरल ) दोहा--नारदादि सेवत जिन्हैं, पारद विसद प्रकांस । नारद बुध बंदन , हिये सारदा बास ॥ १ ॥ २५०० टोहूर कवि (राजा टोडरमल खत्री ) गुन घिन कमान जैसे गुरु बिन ज्ञान जैसे मान विन दान जैसे जल विन सुर है । कंठ निन गीत जैसे हेत वित्र प्रीति जैसे वेस्याः रस-रीति जैसे फल विन तैर है ॥ तार विन जंत्र जैसे स्पाने विन क्षेत्र जैसे पुरुष विन नारि जैसे पुत्र बिन घर है ।ौोड़र सुन: कवि जैसे मन में विचार देख़ौ धर्म विन धन , जैसे पंछी चिन पर है ॥ १ ॥ जार को विचार कहानिका को लाज़ कहा जहां को पाँन कहा धरे को आरसी । निर्गुनी को गुन कहा दान कहा दालिद्री को सेवा कहा सूम की अंडकी सीडार सी ॥ मैपी को ऊंचा कहा साँघु क़डा तैषद् को नीच को , वचन कहाः स्यार की पुकार सी । टोड़र सुकवि ऐसे हठी में न टार घोटरें- भावै कहाँधी बात भारी को पारसी, ॥ २॥ २५१, ठाकुर प्राचीन:, असनीवाने अथवा बुंदेलखंड घxनीन में नैन झु उझ मनों खंजन |न के जाले परे । .१ भारी ।२ पारे के समान 1३- वृक्ष- 1 ४ बीड़ा ।' शराषी । ६ पवित्रता। ७ पलकें ।