पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१३८

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शिवसिंहसरोज

शिवैसिंहसरीज ११ हैं अकरी । गही तन गही फेरि छोड़ी तौन छोड़ दई करी तौ फरी जन ना की सों न करी ६ ॥ कंहि वे सुनिये की कट्टे में दियाँ न कही सुनी को दुख पाबनो है । इनकी सवी मरजी करि अपने जिय को संशुझाधनो है । कदि ठाकुर लाल के देखने को निज मंत्र यही ठहरावन है । इन चाँचंदहइन में पत्रि के समय यह वीर बवंनो है ॥ ७ ॥ कैसे सुचित्त भये निकसे चिंपैंसो-है. हँसें सबसे गंलवाहीं । ये छलंछिद्रन की अनिता बलि के जो चलीं बनता अंवगाहीं ॥ ठाकुर ने जुरि एक भई परपंच कलू रचि हैं ब्रज माहीं । हल चवाइन के दहचोल सो लाल तुम्हें ये दिखात हैं नाहीं।l ८ ॥ कोमलता क्रेज ते सुगन्ध लै गुलाबन ते.चन्द ते .अकास कीनो उदितउजे है । रूप रनिआनन ने चातुरी सुजानन ते नीर नी वानन ते कौ रुक निवेरो है ॥ ठाकुर कहत याँ मसाला विधि कारीगर रचना निहाफि क्यों न होत चित चेरो है । कंचन को रंग सद्दाद नै सुधा को वसुधा को सुख लुष्टि के बनाया सुख तो है ॥ ९ ।' ५२, ठाकुर प्रसाद त्रिपाठी किश्यूनदासू पुरवाले (१) अरिदल दैलिंचे को फरकि फरक उठे करकिं कंरकि लैरी करके सनIहे हैं ।. थरांकि थरकि िथिर थामे ना रहत केंहूँ किरवान गत्रिवे का पाते ही उगाहें हैं | कुरमसाद भंभे महावलसिन् दोऊ उठती तरंगें भरी जुद्ध की उछाहें हैं । कलपलता हैं कवि पंडित को बंद करें जगतपनहैिं प माधौसिंह-ौंहें हैं 7 १ ॥ - ३ठठुरस्में वि क्यों घनैदाघिन कंधे मुंचानेक याँ हरि संकेरचाप उंचायोंरे। १ -प्रपंच करनेवाली २ इलचल 1३कड़ियाँ ।” तलवार। ४. है " है