पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१४३

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शिवसिंहसरोज

१२४ शिवसिंहसरोज २५६ तुलसी ( 8 ) तुलसीदास कवि यदुराय के - ( संग्रहमला ) दोहा-सत्रह सौ बारह बरस) दृदि असह बुध बार तिथि अनंग को सिद्ध यह, भई ऊ लेख को सार कघित्त-एक समै लाल बाल बृन्दावन मॉझ ग लल्प जो बनायो है नवेली को फूलन के हार जे ड, गोपिन को सवे पहिए जल गायों है सहेली को ॥ खामैं न जैन के फिति मiआ बदन मलीन एक देख्थे केली को । औौसर के चुझे अब हार दे मोतिन को जव दीन्हो लाल चौलरा चती को ॥ १ ॥ n ) २६०. तारापति कवि

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" इंदिरा के मंदिर श्रमद दुति कंदुक से बंधेर विनोद ' धौं घिरद के । तारापति ललित लता के स्वच्छ गुच्छ की फल युफल भये आनि ग्रनदद के ॥ कीधों चक्रवात आ ऊँची भूमि पर तुम्ष के परन तीर बासी नाभिनद के । सरोज से उरोज तेरे ओोज भरे कीच मीरफरस मनोज- के ॥ १ ॥ २६१तारा कवि गु ाँ गिले खंजन की भर भये कंजन की वारि विधु औ अंजन समेत हैं । नेह भरे सागर सनेह भरे दीपंक,से बादर सलोने लखि खेत हैं ॥ तरल त्रिवेनी के तरंगन मैं कवि मानों सालिग्राम अपनान के निकेत हैं । मृगमद लागे । गृग टूग दागे मैन छाजन में पागे नैन ऐसे सोभा देत हैं । १ लक्ष्मी । २ गेंद । ३.कठिन । ४ मुंघची । ५ तेल ।