पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१४७

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शिवसिंहसरोज

१२८ शिवसिंहसरोज अधीन हारि सहिये परी ॥ चरचा चकोरन की कोरि डारी कोरन सों कविन कबीसन गरीबी गहिबे परी । आई बीर चंचलाई राधिका के नैनन में खासे खंजरीन खराबी सहिशें परी ॥ १-॥ २६६. तीखी कवि सिंह पै खवा वाहौ जल में डुबाओ चाहौ सूली पैसें चढ़ाओ घोरि गरल पिंयाइबी । बीछी सों डसाओ चाहो ठंाँप वें लिटाओ हाथीआगे डराओ एती भीति उपजाइबी ॥ आागि में जराओ चाहौ अमि में गड़ा तीखी अनी बेधवाओ मोईि दुख नहीं पाइवी । ब्रजजन-यारे कान्ह कान्हु यह बात करो तुम विमुख ताको मुख ना दिखाइबी ॥ १ ॥ २६७तेही कवि कोऊ कहै पिता और को कहै अत कोऊ कहै नाना बावा तन तीनों ताप तय है । कोऊ प्रभु कहै जन को कहै मोल लयो तुम अब कहीं महैिं कादि काहि दयो है ॥ तेही भवें जित तित चाल चाल होइ रही सुख नहीं कहूं वह हाथ गेंद भयो है। कियो हू तिहारो शुरु पालो टू तिहारो ही हौं बीच के लोगन इन बाँटो झुष्टि लयो है ॥ १ ॥ २६८ तानसेन कलावत ग्वालियरवासी पद तेरे नैन लोने री जिन मोहे स्याम सलोने । अति ही दीर्घ विसाल विलोकि कारे भारे पिय रस रिझए कोने ॥ बदनज्योति चंदहु ने निर्मल कुच कठोर अति होने वोने । तानसेन मधु सो रति मानी कंचन क़सोटी कसोने ॥ १. ॥ १६४. तीर्थराज कवि वैसवारे ( भाषासमरसार ) चीर बलवान वालेषन ते अरिन्दन को पठये पता पाय. तम १ विप ।२ शत्रुओं को।