पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१५०

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शिवसिंहसरोज

विसिंहसराज १३ १ २७४. व्यादेव कवि कॉल की सी बेली ये सहली कुंभिलाय गई फूली सी फिरत ते चलाधे दाम चाम के । कहै दयादेष अन अनमाने ढूंचल वे यंग कोरे लग रहे चित्र से हैं धाम के ॥ इसे तू अनोखी अन- खाइल तो अनखात जोह है जनावत है कहे घट धाम के। द - हा त बोले बलि छाँढ़ि दे अनोखो न मान मरु बान बिसु छठे कौन काम के ॥ १ ॥ २७५दामोदर कवि पंकज चंपक वेलित गुलाब की माल बनाघति या यूंद पाक यूछे गैंगोछे से अंग अँगौछि गुलाव फुलेरु सधोरोमैं । भूपन बास सँवार दमोदर आारों से केस में दिखाने ॥ यों प्रिय को मग जोवति है हठि द्वार क्यों चित्र २७६. दिलदार लयो फिर हित चितए दया करि चिते चित हित के, पेरस में जे बसे तिन्हें ने न यहै सो व नित है । दिकत है ॥ देखे टक लागै ननदेखे सैक न चाव निसि व नैना निमिपरहित है । सुखी हो । पलक न लानें देखे , । दक्रेिन चिंता यह दुखित अनदेखे कान्ह तहैद. दुखत हैं '२७७दाल कवि वेणीमाधवदास पसकरवाते। ( गोसाईचरित्र ) तोट बंद यदि भाँति क दिन बीति गये । अपने अपने रसरंग रये ॥ पुखिया : इक लूथर माँझ रहै । हरिदासन को अपमान है।॥ १ अच्छे ।२ ज़रा ।