पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१५५

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शिवसिंहसरोज

१-६ शिसिंहसरोज दास पलटू की । दरवाजे गज ठाके कूकरी सभा के मध्य करी सो कूकरी औ तू करी सो करी\ ५ i ए पाँय दावें एके हाथ सह रावें ए गन Jगोवि के सुगंध सिर नाखे हैं । एजें नदवार्वे एके भोजन करावें एकै बीरी सरसावें सैन बैन -अभिलाखे हैं । देवीदास ए कर जरे दिन-रैगेि जब सो रुख पार्वे तब तैसेई सुभाखे हैं ताही के 8 तन ते तनक स्वास कड़े तेई घर ही के घर में घरी भरि न राखे हैं ॥ ६ | २२ दलपतिरायवंशी ऋर श्रीमाली ब्राह्मणशमशाबादवासी ( अल कार-रहकर ) दोहा-नवत सुराडर मुकुट महिीं प्रतिबिम्बित अलिमाल । किये रतन सब नीलमन, सो गनेस रछपाल ॥ १ ॥ भाषाभूषन अलंकृत, कई य: लच्छन हीन । - ट स्रम करि ताहि सुधार सो, दलपतराय प्रबीन।।२॥ अर्थ कुबलयानंद को बाँो दलपतिय। बंसीधर कषि ने घरे) कहूँ कषित बनाय॥ ३ in मेदपाट श्रीमाल कुलवि महाजन काइ । बासी अमदाबाद के , वसीदलपतिराई ॥ ४ ॥ भौहैं कुटिल कमान सी, सर से पैने नैन। बेधत ब्रज-अबलान हिय, बंसीधर दिनरैन : ५ ॥ २८३. दुर्गा कवि एक कर खड़ग विरा कुल एक कर एक में धनुष एक कर में कृपानी है । लीन्हें सर एक कर उग्र सेल एंक कर अंकुस कर एक चर्म एक में प्रमानी है ॥ दुरगा भनत ऐसी उग्रता प्रसिद्ध ज़ाहैि। रति लोक-देनि भक्त बरदानी है । की ना विलम्ब जगदम्ब अवलम्ब तुही रच्छा करु मात अजासम्पुरानी है ॥ १ ॥ a S